(त्रिशूल स्तंभ से होता है फागुन मड़ई का आगाज)
दंतेवाड़ा। आदि शक्ति मां दंतेश्वरी मंदिर में त्रिशुल स्तंभ की स्थापना के साथ ऐतिहासिक फागुन मंडई की शुरूआत होती है। 6 सौ साल पहले राजा पुरषोत्तम देव ने आंध्र प्रदेश के वारंगल से त्रिशुल लेकर आए थे। देवी भगवती का प्रतीक माने जाने वाले त्रिशूल शुद्ध तांबे से निर्मित है। प्रतिवर्ष बसंत पंचमी को विधिवत त्रिशुल स्तंभ स्थापना के बाद करीब 10 दिनों तक चलने वाले फागुन मंडई की शुरूआत हो जाती है।
सहायक पुजारी हरेंद्र नाथ जिया ने बताया कि प्रतिवर्ष बसंत पंचमी के अवसर पर त्रिशूल स्तंभ स्थापना के साथ ही दक्षिण बस्तर की ऐतिहासिक फागुन मंडई की शुरूआत हो जाती है। उन्होंने बताया कि शुद्ध तांबे से निर्मित त्रिशूल लगभग 6 सौ पुराना है। इसे राजा पुरषोत्तम देव लेकर आए थे। मेला समाप्त होने तथा आमंत्रित देवी-देवताओं की विदाई के दूसरे दिन त्रिशूल को वापस मंदिर में रख दिया जाता है।
बसंत पंचमी पर मां दंतेश्वरी मंदिर में वैदिक मंत्रोचारण के साथ त्रिशुल स्तंभ स्थापित किया गया। इसके साथ ही दक्षिण बस्तर के ऐतिहासिक फागुन मंडई की शुरूआत हो गयी। वहीं दोपहर मांईजी की छत्र का नगर मध्य पूजा अर्चना कर आम के बौर व पलाश के फूल मांईजी के छत्र को अर्पित किए गए।