जगदलपुर। बस्तर की आराध्य मांई दंतेश्वरी के प्रति आस्था और विश्वास में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है। इस क्षेत्र के उत्थान-पतन की साक्षी रहीं मांई दंतेश्वरी हमेशा यहां के रहवासियों की सुख-दुख में शामिल रही हैं।
चौदहवीं सदी में काकतीय राजवंश के राजा अन्नमदेव द्वारा निर्मित मांई दंतेश्वरी का ऐतिहासिक मंदिर भक्ति, श्रद्धा, आस्था, संस्कृति और परंपरा का अदभुत समन्वय है। नए संदर्भो में भी इसकी भक्ति की आभा सात समंदर पार तक दमक रही है। नवरात्र के दोनों पावन पर्व पर मांईजी की पवित्र स्मृतियां लोगों को भक्ति की राह पर प्रेरित करती हैं। यहां ज्योति कलश स्थापना की परंपरा भी अब से लगभग 30 वर्ष पहले शुरू हुई थी, जो अब तक जारी है।
पांच मनोकामना दीपों से हुयी थी शुरूवात
बस्तर की आदिशक्ति मां दंतेश्वरी मंदिर में 1985 में प्रधान पुजारी ने घी के ज्योति कलश प्रज्जवलित किए थे। वहीं 1991 में जगदलपुर के राजस्व निरीक्षक तथा दंतेवाड़ा के लोगों ने तेल की मनोकामना दीप प्रज्जवलन करने की परंपरा शुरूआत की। इसके बाद मां दंतेश्वरी की आस्था और श्रद्धा बढ़ती गई तथा आज मांईजी के मंदिर में हजारों की संख्या में तेल व घी के ज्योत प्रज्जवलित हो रहे हैं। मंदिर के प्रधान पुजारी हरिहर नाथ जिया ने बताया कि मांई के दरबार में ढाई दशक से ज्योत प्रज्जवलित करने की परंपरा शुरू की गई। इससे पहले मांईजी के मंदिर में परंपरानुसार अखंड ज्योत ही प्रज्जवलित होती रही है।
उन्होंने बताया कि वे और उनके चार अन्य सहयोगियों ने घी के पांच ज्योति कलश प्रज्जवलित कर इस परंपरा की शुरूआत की थी। करीब पांच साल बाद जगदलपुर के आरआई स्व. ठाकुर, स्व. हरिहर महापात्र व डा. सोमारूराम परगनिया ने तेल ज्योत की परंपरा प्रारंभ की। पुजारी ने बताया कि दंतेवाड़ा की देवी मां दंतेश्वरी को शुरूआती दौर में प्रचार प्रसार नहीं मिल सका था, लेकिन अब बीते कुछ सालों से श्रद्धालुओं की संख्या में काफी इजाफा होता जा रहा है। प्रतिवर्ष शारदीय व चैत्र नवरात्र में आसपास के अलावा दूरस्थ अंचलों से श्रद्धालु यहां मांईजी के दर्शनार्थ पहुंच रहे हैं। इसके साथ ही मनोकामना दीप प्रज्जवलित करने वाले भक्तों की भी संख्या बढ़ती गई और बढ़ भी रही है।
विदेशों तक पहुंची मां की महिमा
देश ही नहीं, विदेशों में भी स्थित दंतेश्वरी मंाई के भक्त शारदीय और वासंतिक नवरात्र पर आस्था के दीप जलाकर अपनी भक्ति मांईजी के प्रति प्रदर्शित करते हैं, यह परंपरा काफी पुरानी है, इनमें आस्टे्रलिया, इग्लैंड, सिंगापुर, नेपाल हैं। इधर मां दंतेश्वरी मंदिर में शारदीय नवरात्र की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। मंदिर के रंग-रोगन के साथ ज्योति कलश स्थापना की भी तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। इसके लिए मांईजी के सेवाकार कतियार, कुम्हार, मांझी-चालकी आदि भक्तिभाव से जुटे हुए हैं।