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बेडियों में जकडी है बुधराम की जिंदगी

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राजसमंद। बेडियों में जिन्दगी जी हां यह किसी उपन्यास का नाम नहीं बल्कि राजसमंद और भीलवाडा की सीमा पर देवगढ के पास थाना गांव में रहने वाले बुधराम की हकीकत है। तीस साल से बेडियों में जकड़ा यह युवक पशुवत जीवन गुजार रहा है। बचपन से इसका मानसिक विकास कम हुआ था। उम्र बढने के साथ ही इसकी मानसिक स्थिती बिगडती गयी। आज यह चालीस वर्ष की उम्र का हो चुका है लेकिन इसकी बुजुर्ग मां और बेटी समान बहु इसकी देखभाल करती है। यह दिनरात मकान के बाहर बने चबूतरे पर ही बैठा रहता है। यही इसकी दुनिया है। लेकिन सर्दी की रातों में इसे बकरियों के बाडे में सुलाना पडता है। लेकिन हर समय बेडियों  मे जकडा रहता है।

सबसे ताज्जुब की बात यह है कि दो जिलो की सीमा मे बसे इस गांव के लोग सौतेला व्यवहार कर रहे है। न तो इस गांव मे चिकित्सा व्यवस्था है और नही सडक। ऐसे मे इस परिवार को केवल 500 रुपये की सरकारी पेंशन मिलती है जो ऊंट के मुंह मे जीरे का समान है। केवल एक जमीन के छोटे से टुकडे मे सब्जी उगाकर इस परिवार का गुजर बसर हो रहा है। इनका बीपीएल कार्ड बना हुआ है लेकिन गांव मे किसी तरह की कोई सुविधा नहीं है।

कभी कोई अधिकारी और जनप्रतिनिधि इस गांव में आते तक नहीं है। बुद्धराम को बेडियों मे रखने का कारण है कि खुला होने पर सडक पर भाग जाता है पेड़ पर चढ जाता है। कुछ दिनों पूर्व नहलाने के दौरान यह भागता हुआ पांच किलोमीटर दूर ताल गांव तक पंहुच गया था। इसके अलावा गुस्सा आने पर यह हमला भी करके दूसरों को चोटिल कर देता है। इस डऱ से इसके भाई के बच्चे भी इसके पास नहीं जा सकते है। इसके भाई का विवाह 8 वर्ष पूर्व हुआ था तब घर मे बहु बनकर आयी आशा इन्हे इसी हालत मे देख रही है। इसके पिता जीवित रहने के दौरान इसके उपचार का प्रयास करते रहे लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ और नही इसकी हालत मे सुधार हुआ। इसकी 75 वर्षीय बुजुर्ग मां अब इसकी देखभाल करने मे खुद को असमर्थ पाती है। इसके चलते एक मां खुद अपने पुत्र की मौत की दुआएं मांगती है। ऐसे मे इन्हे अब सरकार की ओर से कोई सुविधाए अथवा चिकित्सा व्यवस्था नहीं नहीं मिल पा रही है। परिवार के लोगों ने सरकारी से इस परिवार की मदद की गुहार लगाई है।

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