श्री नामदेव जी महाराष्ट्र के एक सुप्रसिद्ध संत थे। वे विट्ठल भगवान के बहुत बड़े भगत हुए हैं। उनका ध्यान सदा विट्ठल भगवान के दर्शन, भजन और कीर्तन में ही लगा रहता था। सांसारिक कार्यों में उनका जरा भी मन नहीं लगता था।
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वे एकादशी व्रत के प्रति पूर्ण निष्ठावान थे। वे उस दिन जल भी नहीं पीते थे। एकादशी की सम्पूर्ण रात्रि को हरिनाम संकीर्तन करते थे। एकादशी को वे न अन्न खाते और न किसी को खिलाते।
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एक दिन एकादशी की रात्रि को वे हरिनाम संकीर्तन कर रहे थे। उनके साथ अनेकानेक भक्त भी संकीर्तन कर रहे थे। अचानक एक क्षीणकाय, हड्डियों का ढाचा मात्र एक वृद्ध ब्राह्मण उनके द्वार पर आया और बोला,‘मैं अत्यन्त भूखा हूं। मुझे भोजन कराओ अन्यथा मैं भूख के मारे मर जाऊंगा।’
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श्री नामदेव जी बोले,‘मैं एकादशी को न अन्न खाता हूं और न अन्न किसी और को खिलाता हं। अतः ब्राह्मण देवता प्रातः काल सूर्योदय का इंतजार करो। व्रत का पारण कर आपको भर पेट भोजन कराऊंगा।’
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ब्राह्मण बोला,‘मुझे तो अभी ही भोजन चाहिए। मैं एक सौ बीस वर्ष का बूढ़ा हूं। एकादशी व्रत आठ वर्ष से लेकर अस्सी वर्ष तक के लोगों के लिए है। मैं भूख से मर जाऊंगा और तुमको ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा।’
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श्री नाम देव जी ने कहा,‘ब्राह्मण देवता चाहे कुछ भी हो जाए मैं आपको भोजन नहीं करा सकता। कृपया आप सुबह तक प्रतिक्षा करें।’
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श्री नाम देव जी के ऐसे व्यवहार के प्रति अन्य ग्राम-वासियों ने नाम देव जी को निष्ठुर कहा और ब्राह्मण को भोजन देना चाहा परन्तु ब्राह्मण ने भोजन लेने से इंकार कर दिया और कहा,‘यदि मैं भोजन ग्रहण करूंगा तो सिर्फ और सिर्फ नामदेव से ही करूंगा।’
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श्री नामदेव जी ने जब ब्राह्मण को भोजन न दिया तो कुछ ही समय में उसके प्राण पखेरू उड़ गए। वहां उपस्थित सभी लोग श्री नामदेव जी के प्रति अप शब्द कहने लगे और उन्हें हत्यारा कह कर संबोधित करने लगे।
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श्री नाम देव जी कुछ न बोले पूर्ववत विट्ठल भगवान के भजन और कीर्तन में ही लगे रहे तथा एक पल के लिए उठे और मृतक शरीर को ढक कर रख दिया व मृत देह के समक्ष नाम संकीर्तन करते रहे।
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प्रातःकाल श्री नाम देव जी ने व्रत पारण किया और एक चिता बनवाई। स्वयं उस ब्राह्मण के पार्थिव शरीर को अपनी गोद में लेकर चिता पर बैठ गए।
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चिता को प्रज्वलित किया गया। जब आग की लपटें श्री नामदेव जी तक पहुंचने ही वाली थी तो अचानक वह ब्राह्मण उठा और श्री नाम देवजी को उठा कर चिता से बाहर कूद पड़ा जब तक नामदेव जी कुछ समझ पाते वह बूढ़ा अंतर्धान हो गया।
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स्वयं विट्ठल भगवान ही उनकी परीक्षा लेने आए थे। इस घटना को देख कर सब आश्चर्यचकित हो गए और श्री नाम देव जी की जय-जयकार करने लगे। धन्य हैं श्री नामदेव जी।
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चित में प्रज्ञा का प्रकाश, ज्ञान का दीपक जले तभी ठाकुर जी का निराकार स्वरूप दिखाई देता है। भागवत श्रवण से चित रूपी दीपक जलाने का प्रयास मानव को करना चाहिए। मानव को अज्ञानता से लडऩा चाहिए मगर आलोचना और अज्ञानता पर चर्चा करके अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए।
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