अजमेर के वयोवृद्ध समाजसेवी प्रेमराज सरावगी की रचना जो पुष्कर से प्रकाशित नामदेव संदेश पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है। उन्होंने इसे ‘नामदेव न्यूज डॉट कॉम’ के पाठकों के लिए उपलब्ध कराया है।
सम्मेलन रो ब्याव
देखने आया कर-कर चाव ।
अस्यो ओ सम्मेलन रो ब्याव ।।
कामणयां निकली कर सिणगार,
आंख में काजल रेख संवार,
पोमचो जयपुरिया रो ओढ़,
रूपस्यू करवा लागी कोड़,
मना में वर देखण रो चाव ।
अस्यो ओ सम्मेलन रो ब्याव ।।
हाथ में मेहंदी खूब संवार,
पगा में पायल री झणकार,
कलायां कंघण बिंदी माथ,
मोगरो महके जूड़ा साथ,
वरा पर दीनी निछराव ।
अस्यो ओ सम्मेलन रो ब्याव ।।
लूण राई ने लीनी हाथ,
करो फिर फूलां री बरसात,
बिखेरया परणेता पर जाय,
निगोड़ी नजर नहीं लग जाय,
बधावा मीठा सुर सूं गाव ।
अस्यो ओ सम्मेलन रो ब्याव ।।
बींद ने बैठाया रथ मांय,
बीनणयां गैणोबेस सजाय,
निकासी निकली बीच बजार,
हजारों लोग लुगायां लार,
शहर में छायो हरख उछाव ।
अस्यो ओ सम्मेलन रो ब्याव ।।
सांझ में मंडप ने सिणगार,
दीपला घी का जोया आज,
ढोलड़ा करवा लाग्या गाज,
गगन सूं चांद निरखणे आव ।
अस्यो ओ सम्मेलन रो ब्याव ।।
सामने वेदी कुंड बणाय,
जिणा पर परणेतु बैठाय,
फिराया फेरा ब्याने सात,
बीनणयां कीनी वर के साथ,
लुगायां कोयलड़ी ने गाव ।
अस्यो ओ सम्मेलन रो ब्याव ।।
परणने घर पोली रे बार,
लुगायां सारी लागी लार,
बैनडी रोकी घर की पोल,
बारणे बाजण लाग्या ढोल,
घरां सूं देखण ने सब आव ।
अस्यो ओ सम्मेलन रो ब्याव ।।
घणी आशीषां सब सूं पाय,
बड़ेरा घर का देव धुकाय,
खुलाया कांकण-डोरा साथ,
जुड़ावे कुलदेवी ने हाथ,
गीत देवरां घर पर गाव ।
अस्यो ओ सम्मेलन रो ब्याव ।।