लखनऊ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने अपने स्वयंसेवकों को सेवा का पाठ पढ़ाया। सेवा के बल पर मेवा खाने की इच्छा रखने वालों को नसीहत देते हुए कहा, ‘‘मेवा खाने की इच्छा रखने वाला स्वयंसेवक नहीं होता है। सेवा की कुशलता तब मानी जाती है, जब कोई व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के निरपेक्ष रूप से सेवा में सन्नद्ध होता है। अहंकार रहित व्यक्ति ही सेवा कार्य में भी खुश दिखता है। जिस व्यक्ति में नीरसता का भाव मिलता है, वह न तो मानव की श्रेणी में होता है और न ही स्वयंसेवक होता है।‘‘
श्री भागवत, संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के सामने स्थित माधव सेवाश्रम में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
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