भोपाल गैस त्रासदी के जख्म अब भी हरे
भोपाल। आज से 31 साल पहले दो-तीन दिसंबर 1984 की दरमियानी रात भोपाल में मौत का कहर बरसाने वाली रात थी। आधी रात के बाद शहर से 5 किलोमीटर दूर अमेरिका की यूनियन कार्बाइड कंपनी के प्लांट का स्टोरेज टैंक दबाव को नहीं झेल पाता और फट गया। प्लांट से ज़हरीली गैस का रिसाव शुरू हुआ।
मिथाइल आइसोसायनाएट गैस फ़ैक्ट्री से होते हुए 9 लाख की आबादी वाले भोपाल शहर पर अपना कहर बरपाना शुरू किया। देखते ही देखते सैकड़ों लोग सोते हुए ही सीधे मौत के आगोश में समा गए। हजारों लोग अब भी इस त्रासदी का जख्म लेकर जी रहे हैं। तब से लेकर अब तक इस भीषण भोपाल गैस त्रासदी को गुजरे हुए 31 वर्ष हो गए हैं, लेकिन आज भी वह स्याह रात डराती है।
यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से जहरीले गैस रिसाव और रासायनिक कचरे के कहर का प्रभाव आज भी बना हुआ हैं। बच्चे अपंग होते रहे, मां के दूध में ज़हरीले रसायन पाये जाने की बात भी सामने आई, चर्म रोग, दमा, कैंसर और न जाने कितनी बीमारियां धीमा जहर बनकर आज भी गैस प्रभावितों को अपनी चपेट में ले रही हैं।
क्या थी त्रासदी
मध्य प्रदेश के भोपाल शहर मे 2-3 दिसम्बर सन् 1984 की रात भोपाल वासियों के लिए काल की रात बनकर सामने आई। इस दिन एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। 2-3 दिसम्बर 1984 को रात बारह बजकर पांच मिनट पर यूनियन कार्बाइड कारखाने से अकस्मात मिथाइल आइसोसायनाईट अन्य रसायनों के रिसाव होने से कई जाने गईं थी। हजारों लोगों को आधी रात हत्यारी गैस ने मौत की नींद सुला दिया, सैंकड़ों को जानलेवा बीमारी के आगोश में छोड़ गई यह जहरीली गैस। आज भी गैस के प्रभाव उन लोगों में साफ देखे और महसूस किए जा सकते हैं। उनकी यादों में वह आधी रात दहशत और दर्द की काली स्याही से इतिहास बनकर अंकित हो गई है, उसे न अब कोई बदल सकता है और न ही मिटा सकता।
भोपाल गैस त्रासदी एक ऐसा जख्म जिसका दर्द आज 31 साल बाद भी न सिर्फ समझा जा सकता है, बल्कि देखा और सुना जा सकता है। आज भोपाल के लोग भी उसी तरह के दंश को देख और महसूस कर रहे है।
हालात ये हैं कि घटना में मारे गए लोगों आज भी इंसाफ के लिए लाचार आंखों से हमारे नेताओं को निहारते है, तो मिली सरकारी मदद ऊंट के मुंह में जीरे से ज्यादा नहीं थी, जो महज आज हजारों लोगों को सड़क पर भीख मांगने के लिए मजबूर कर रहा है, जबकि सैकड़ो परिवार आज भी दो जून की रोटी के लिए दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं।
हर साल भारत सहित दुनियाभर से इनके लिए सात्वंना के लिए दो-चार फूल, प्रदर्शन और शोक सभाएं हो जाती हैं मगर पीडि़तों को न्याय अब तक नहीं मिला है।
खत्म नहीं हो रहा जहर का असर
भोपाल गैस त्रासदी के 31 साल बाद भी यूनियन कार्बाइड का जहरीला प्रदूषण पीछा नहीं छोड़ रहा है। सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरंमेंट द्वारा किए गए परीक्षण में इस बात की पुष्टि हुई है कि फैक्ट्री और इसके आसपास के 3 किमी क्षेत्र के भूजल में निर्धारित मानकों से 40 गुना अधिक जहरीले तत्व मौजूद हैं। मध्य प्रदेश प्रदूषण बोर्ड के अलावा कई सरकारी और ग़ैरसरकारी एजेंसियों ने पाया है कि फैक्ट्री के अंदर पड़े रसायन के लगातार जमीन में रिसते रहने के कारण इलाके का भूजल प्रदूषित हो गया हैं।
कारखाने के आस-पास बसी लगभग 17 बस्तियों के ज़्यादातर लोग आज भी इसी पानी के इस्तेमाल को मजबूर हैं। एक सर्वेक्षण के मुताबिक़ इसी इलाके में रहने वाले कई लोग शारीरिक और मानसिक कमजोरी से पीडि़त हैं। गैस पीडि़तों के इलाज और उन पर शोध करने वाली संस्थाओं के मुताबिक़ लगभग तीन हज़ार परिवारों के बीच करवाए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि इस तरह के 141 बच्चे हैं जो या तो शारीरिक, मानसिक या दोनों तरह की कमजोरियों के शिकार हैं। कई के होंठ कटे हैं, कुछ के तालू नहीं हैं या फिर दिल में सुराख है। इनमें से काफी सांस की बीमारियों के शिकार हैं।
दूसरी और इसे एक विडम्बना ही कहेंगे कि अब तक किसी सरकारी संस्था ने कोई अध्ययन भी शुरू नहीं किया है या न ये जानने की कोशिश की है कि क्या जन्मजात विकृतियों या गंभीर बीमारियों के साथ पैदा हो रही ये पीढिय़ां गैस कांड से जुड़े किन्ही कारणों का नतीजा है या कुछ और। और ना ही शासन ने अब तक इस तरह के बच्चों को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की है।
लाखों लोग हुए प्रभावित
जिस वख्त यह हादसा हुआ उस समय भोपाल की आबादी कुल 9 लाख के आसपास थी और उस समय लगभग 6 लाख के आसपास लोग यूनियन कार्बाइड कारखाने की जहरीली गैस से प्रभावित हुए थे। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक लगभग 3000 लोग मारे गए थे। ये थे सरकारी आंकड़े लेकिन यदि गैर सरकारी आंकड़ों की बात की जाए तो अब तक इस त्रासदी में मरने वालों की संख्या 20 हजार से भी ज़्यादा है और लगभग 6 लाख लोग आज भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं।
न्याय को तरस रहे हैं पीडि़त
सदी की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी भोपाल गैस कांड के मामले में सीजेएम कोर्ट ने आखिरकार 25 साल बाद सभी आठ दोषियों को दो साल की कैद की सजा सुनाई। सभी दोषियों पर एक-एक लाख रुपए और यूनियन कार्बाइड इंडिया पर पांच लाख रुपए का जुर्माना ठोका गया। इतना ही नहीं सजा का ऐलान होने के बाद ही सभी दोषियों को 25-25 हजार रुपए के मुचलके पर जमानत भी दे दी गई।
अब इसे अंधे कानून का अधूरा इंसाफ न कहें तो और क्या कहें, क्योंकि न्याय का इन्तजार कर रहे गैस पीडि़तों को फिर निराशा ही हाथ लगी है। ये वही गैस पीडि़त हैं जो पिछले 31 सालों से जांच एजेंसियों, सरकार और राजनीतिक दलों द्वारा ठगते आ रहे हैं। उन्हें न्याय की उम्मीद थी लेकिन वो भी पूरा नहीं मिला। त्रासदी के मुख्य गुनहगार वारेन एंडरसन की मौत हो चुकी है।
उसे नया नाम मिला डॉक्टर डेथ
2 दिसंबर 1984 की रात भोपाल सोया था। 3 दिसंबर 1984 की सुबह जब भोपाल जागा तो कयामत लोगों का इंतजार कर रही थी। शहर की सरजमीं पर बिछी थीं 4000 से ज्यादा लाशें। उन खौफनाक पलों के सबसे बड़े गवाह हैं डॉक्टर डेथ। भोपाल के लोग उनको इसी नाम से जानते हैं। उनके लिए भी उन दर्द के लम्हों को दोबारा जीना आसान नहीं, कलेजा चाहिए।
वो बताते हैं कि कैसे 25 साल पहले मानवता पर टूटा था एक गैस का कहर। उस रोज एक ही दिन में उन्होंने किया था 780 लाशों का पोस्टमॉर्टम। एक हफ्ते में 3 हजार लाशों के साथ चीरफाड़ करने के बाद मौत नाचती थी उनकी आंखों के सामने। विभाग में तीन चार लोग थे। सरकार से परमिशन ली कि सबका पोस्टमॉर्टम नहीं करेंगे।
वे ही वो शख्स हैं जिन्होंने पहली बार दुनिया को बताया था यूनियन कार्बाइड के किलर टैंक नंबर 610 का सच क्योंकि किलर टैंक नंबर 610 से निकली गैस का एनालिसिस किया गया तो उसमें से वो पदार्थ मिले जो लाशों पर भी पाए गये। मतलब गैस कहीं और से नहीं उसी टैंक से आई थी। आज भी दर्द का वो मंजर यादकर उनका कलेजा फट जाता है। इतना बड़ा हादसा था। एक मां एक छोटे बच्चे को गोद में लेकर पड़ी हुई है और मर गई है। एक बाप दो बच्चों को लेकर पड़ा है।