घरों में पारंपरिक तौर पर गेहूं का आटा, देसी घी, कौंच बीज, अश्वगंधा, कालीमिर्च, लौंग, जावित्री, जायफल, पीपल व बूरा आदि मिलाकर लड्डू बनाए जाते हैं।
घरों में पारंपरिक तौर पर गेहूं का आटा, देसी घी, कौंच बीज, अश्वगंधा, कालीमिर्च, लौंग, जावित्री, जायफल, पीपल व बूरा आदि मिलाकर बनाएं जाने वाले लड्डू आयुर्वेदिक गुणों से युक्त होते हैं। ये ना सिर्फ स्वाद से भरपूर होते हैं, बल्कि सेहत के लिये भी फायदेमंद होते हैं। सुबह व शाम नियमित तौर पर दूध के साथ एक लड्डू का सेवन करना उचित रहता है। खासतौर पर सर्दियों में इन लड्डुओं के सेवन का बहुत लाभ होता है, क्योंकि सर्दियों में हमारा पाचनतंत्र इन हर्बल लड्डुओं में मौजूद पौष्टिक तत्वों से मजबूत बनता है।
गेहूं के आटे, देसी घी, ग्वारपाठा (एलोवेरा) या गोंद, अजवाइन, कालीमिर्च, अश्वगंधा, हल्दी, मुलैठी, पीपल, सौंफ व बूरा को उपयुक्त मात्रा में मिलाकर बनाए गए ग्वारपाठे या गोंद के लड्डू पाचनतंत्र, दिमाग व हड्डियों के लिए बेहद लाभदायक होते हैं।
वृद्ध लोगों के मेथीदाना, गेहूं का आटा, अश्वगंधा, देसी घी, हल्दी, अजवाइन, मुलैठी, ग्वारपाठा, पीपल, सौंफ और बूरा के उचित अनुपात से बनाए गए दानामेथी लड्डू का सर्दियों में बुजुर्गों द्वारा सेवन करना उनके लिये लाभदायक है। इनसे उनकी हड्डियों को बल और मजबूती मिलती है, जोड़ों के दर्द, शारीरिक कमजोरी, पाचनतंत्र व पेट संबंधी समस्याओं से भी निजात मिलती है।
गेहूं के आटे, देसी घी, सुपारी, शतावरी, कमरकस, गोंद, लोध्र, लाजवन्ती, जायफल, जावित्री, सौंठ, बूरा, बादाम, खरबूजे की गिरि और मखाने को उचित अनुपात में मिलाकर बनाए गए जापे के लड्डू प्रसव के बाद महिला को 40 दिनों तक सेवन कराने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है। इसे गर्म दूध के साथ जच्चा को सुबह-शाम दिया जाता है। सिज़ेरियन या कठिन प्रसव वाली जच्चाओं के सर्जरी के टांकों को जल्द भरने में भी ये सहयक होते हैं।
अलसी के बीज, गेहूं के आटे, काली मिर्च, देसी घी, सौंफ, लौंग, जायफल, जावित्री, पीपल व बूरा के उचित अनुपात से तैयार किये अलसी के लड्डू हृदय संबंधी व जोड़ों से संबंधित समस्याओं से बचने में सहायक होते हैं तथा वजन नियंत्रित में सहयक होते हैं। इन लड्डुओं के फ्रिज के बजाए किसी हवादार जगह ढ़क कर रखना चाहिये।