पणजी। कला ओलंपिक नहीं होती, सर्वश्रेष्ठ का चयन करने के लिए निर्णय लेना पड़ता है। यह कहना है फिल्म निर्माता शेखर कपूर का ।
46 वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव-2015 (इफ्फी-2015) में अंतरराष्ट्रीय ज्यूरी के अध्यक्ष शेखर कपूर ने रचनात्मक कार्यों के बारे में निर्णय लेने की प्रक्रिया में होने वाले रचनात्मक टकरावों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि निर्णय और पूर्वाग्रह में बहुत कम अंतर होता है, तटस्थ निर्णय लेना मुश्किल काम है।
इफ्फी में फिल्मों के चयन और निर्णय की प्रक्रिया की चर्चा करते हुए कपूर ने यह भी कहा प्रतिस्पर्धा श्रेणी में कुछ फिल्मों की गुणवत्ता अद्भुत थी। इतनी अच्छी फिल्मों में से किसी एक फिल्म का चयन करना ज्यूरी के सदस्यों के लिए बहुत कठिन रहा।
बाल फिल्मों के बारे में पूछे गए प्रश्न के जवाब में श्री कपूर ने कहा कि ‘फिल्मों के माध्यम से शिक्षा’ से आगे बढ़कर सोचने का समय आ चुका है, शिक्षा प्रदान करने वाली फिल्में अब बच्चों को पसंद नहीं आतीं। साथ ही बच्चों के लिए भी यह जरूरी है कि वे सिनेमा और उससे जुड़ी प्रक्रिया को सीखें।
ज्यूरी के सदस्यों में से एक सुहा अर्राफ ने कहा, इफ्फी के दौरान खचाखच भरे थिएटरों को देखकर उन्हें बहुत खुशी हुई और यह देखना बहुत ही सुखद है कि महोत्सव में अच्छे सिनेमा को बहुत सराहा जा रहा है। उन्होंने फिल्मों के विकास के बारे में भी अपने विचार प्रकट किए।
उन्होंने कहा कि किसी भी फिल्म के बारे में फैसला करते हुए फिल्मकार के नजरिये को समझना महत्वपूर्ण है। एक फिल्म की दूसरी फिल्म से तुलना करना आसान नहीं है, क्योंकि प्रतिस्पर्धा की समान श्रेणी में अलग अलग शैलियों और विषयों की फिल्में शामिल थीं। ज्यूरी के सदस्य माइकल रैडफोर्ड ने कहा कि महोत्सव की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए मशहूर हस्तियों को साथ जोडऩा महत्वपूर्ण होगा। दक्षिण कोरिया के ज्यूरी सदस्य ज्यों क्यू हवान ने भी इस साल इफ्फी में प्रतिस्पर्धा खंड में शामिल की गई फिल्मों की गुणवत्ता पर संतोष व्यक्त किया।