वाराणसी। विश्व की धार्मिक नगरी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र काशी में एक नया इतिहास बनने जा रहा है। पितृ पक्ष में पितरों के ऋण से मुक्ति पाने के लिए और उनकी आत्मा की शान्ति के लिए भारत के इतिहास में और देश की आजादी के बाद पहली बार किन्नर समुदाय ने भी श्राद्ध और पिंडदान करने का निर्णय लिया है।
किन्नर समुदाय के लोग 24 सितंबर को अपने पूर्वजों की प्रसन्नता के लिए पिंडदान करेंगे। इसी के साथ उनकी लगभग 500 वर्षों के बाद सनातन धर्म में वापसी होगी। इस कर्मकांड को काशी के 21 पंडित संपन्न करायेंगे। इस ऐतिहासिक घटनाक्रम में वे 70 किन्नर मंडलेश्वर शामिल होंगे जो देश भर में फैले अपने समुदाय के लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। पिंडदान के अगले दिन यानी 25 सितंबर को वे अस्सी घाट पर गंगा पूजन करेंगे।
यह जानकारी उज्जैन के आचार्य किन्नर महामंडलेश्वर अखाड़े की महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने महमूरगंज स्थित गंगा महासभा के कार्यालय में पत्रकारो से बातचीत में दी। बताया कि मुगल शासन के बाद जिस तरीके से हिन्दू सनातन धर्म में किन्नरो का अस्तित्व खत्म हुआ वह बहुत कष्टदायी रहा। जबकि धर्म स्थापना में हर युग में किन्नरों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। बताया कि अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे किन्नरो को 311 साल बाद 15 अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने हक दिया जिसके बाद किन्नर समाज ने उज्जैन में महामंडलेश्वर अखाड़े की स्थापना की और मुझे उसका दायित्व सौपा गया। जब मुझे इसकी जिम्मेदारी सौपी गयी तो अब हमारा भी दायित्व बनता है कि हम हिन्दू सनातन धर्म में जो 16 संस्कार होता है उसका पालन करे। और जो भी पूर्व में हमारे समाज के पूर्वज मर चुके है उनका पिंडदान और श्राद्ध करें। बताया कि अभी तक किन्नरो को सिर्फ जला दिया जाता रहा और उसके बाद की कोई क्रिया तेरहवी आदि नहीं की जाती रही। जिसके कारण पूर्वजो की आत्मा भटकती रही।
काशी के बाद गया जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि गया वो जाते है जिनका गोत्र आदि होता है हमारे यहाँ तो पैदा होते ही माँ-बाप घर से निकाल देते है। हम जीवन भर पैसे कमा के उन्ही घर वालो को देते है। लेकिन जब अंतिम समय आता है तो जैसे तैसे सिर्फ जला दिया जाता है और उसके बाद कोई क्रिया नही की जाती।
बताया कि मुम्बई, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार व यूपी सहित पुरे देश से किन्नर पिशाचमोचन कुण्ड पर पहुंचेंगे।