सिद्धार्थनगर। बोए पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय…। यह बात सभी जानते और मानते हैं मगर इटवा तहसील का सिसवा बुजुर्ग गांव इसका अपवाद है। यहां सदियों पुराना पीपल का पेड़ अपने-आप में अजूबा है। क्योंकि पीपल के इस पेड़ पर बकायदा आम उगते हैं। आम ही नहीं, बल्कि दूसरे फल भी लगते हैं।
यह पेड़ मौसम के हिसाब से पांच अलग-अलग किस्म का फल देता है। यहां एक सुंदर वाटिका और प्राचीन मंदिर भी है। हैरत है कि यह जगह अभी तक पर्यटन विभाग और प्रशासन की नजरों से अछूता है।
सैकड़ों साल पुराने पीपल के इस पेड़ में न तो कोई कलम जोड़ी गई है और न ही इसमें सटा कर कोई और पेड़ लगाया गया है। पेड़ की डालियों में ही सारा रहस्य छिपा है। आम के मौसम में इसकी कुछ डालियों में अचानक आम फलने लगते हैं, तो उसके बाद के सीजन में गूलर के मीठे फल लटकने लगते हैं।
इसके अलावा समय पर पीपल का अपना फल तो होता ही है। वक्त पर इसमें बरगद और पाकड़ के फल भी आते हैं। ऐसा कैसे होता है, इस बारे में कृषि वैज्ञानिक डा. अतहर बताते है कि अक्सर एकपेड़ में उससे मिलती जुलती प्रजाति का फल निकलना तो संभव है, लेकिन पांच विभिन्न फल निकलने की बात शोध का विषय है। यह एक तरह से चमत्कार ही है।
सिसवा ही नहीं आस-पास के ग्रामीण इसे भगवान की कृपा मान रहे हैं। इसलिए इसकी पूजा अर्चना रोज होती है। लोग इसे विज्ञान पर भगवान की श्रेष्ठता की संज्ञा देते हैं।
इटवा तहसील मुख्यालय से तकरीबन 10 किमी उत्तर पूरब सिसवा गांव के बाहर स्वर्गीय बाबा परमहंस दास की कुटी पर यह विशाल वृक्ष न जाने कितने सालों से खड़ा है। इस कुटी की देखरेख उनके वंशज कर रहे हैं।
कुटी निकट एक पोखर भी है। उसके आस पास तमाम औषधीय पौधे भी रोप दिए गए। अब यह स्थान पंचवाटिका के नाम से जाना जाता है। श्रद्धालु वहां अक्सर पूजा अर्चना करते हैं। पीपल का वह वृक्ष उनके लिए श्रद्धा का विषय बना है।
बाबा परमहंस के वंशज ब्रहमदेव शुक्ल का कहना है कि यह प्रकृति का चमत्कार है। यह स्थान अब श्रद्धास्थल के रूप में स्थापित है, लेकिन प्रशासन इस पर घ्यान नहीं दे रहा है। यह दु:खद है।
दूसरी तरफ सिसवा बुजर्ग गांव के प्रधान बुद्धिसागर का कहना है कि इस स्थल के विकास के लिए वन विभाग को एक प्रस्ताव बना कर भेजा गया है, लेकिन वहां से कोई कार्यवाही नहीं हो रही है।