ग्वालियर। ऐसा लगता है कि हर जगह ग्वालियर की उपेक्षा हो रही है। राज्य के वित्त मंत्री जयंत मलैया ग्वालियर के प्रभारी मंत्री हैं, लेकिन वह महीनों ग्वालियर नहीं आते। इस वजह से अनेक जरूरी शासकीय कार्य रूक जाते हैं। केन्द्र की स्मार्ट सिटी योजना में ग्वालियर को शामिल नहीं किया गया। इस भेदभाव व निष्क्रि यता से ग्वालियर वासियों में गुस्सा है। विपक्ष का आरोप है कि ग्वालियर के सत्तारुढ़ जनप्रतिनिधियों ने अपनी जिम्मेदारी ठीक ढंग से नहीं निभाई।
उपेक्षा का सिलसिला यहीं नहीं रूका। ग्वालियर मेले में हुई एमपी एक्सपोर्टेक मीट के शुभारंभ सत्र में क्षेत्र की विधायक व मंत्री माया सिंह को नजरअंदाज किया गया, जबकि प्रोटोकाल के तहत उन्हें विशेष अतिथि के रूप में बुलाया जाना था।
अभी हाल में शिवराज सरकार ने दो बार निगम-प्राधिकरणों में नियुक्तियों संबंधी सूची जारी की, लेकिन ग्वालियर के किसी भाजपाई को इसमें नहीं लिया गया। ग्वालियर नगर निगम परिषद के एल्डरमैन की नियुक्ति भी एक साल से अटकी पड़ी है और ग्वालियर व्यापार मेला अध्यक्ष की नियुक्ति दो साल से अटकी हुई है। ग्वालियर मेले का ऐतिहासिक स्वरूप रहा है, लेकिन इस बार का मेला तो शासन ने विशेष रूप से उद्योग विभाग ने पूरी तरह चौपट कर दिया, क्योंकि पहली बार मेले का शुभारंभ ही नहीं हुआ। कागजों में मेला चलता रहा व लगातार 15 दिन तक मेला स्थल सूना रहा।
ग्वालियर के बारे में की गईं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की घोषणाएं भी कोरी घोषणाएं साबित हो रही हैं। उदाहरण के रूप में उन्होंने 4 माह पूर्व घोषणा की थी कि कुशवाह समाज के युवक की कथित पुलिस मुठभेड़ की जांच के लिए न्यायिक आयोग बनेगा, आज तक इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
राज्यपाल, केन्द्रीय मंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक ग्वालियर से जुड़े हैं, फिर भी इस ऐतिहासिक नगरी की कहीं न कहीं उपेक्षा होना दर्शाता है कि जनप्रतिनिधियों में एकजुटता की कमी है।