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अब तो ना कहिए इस ‘दावत’ को

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मृत्युभोज के खिलाफ नामदेव समाज में जली अलख

चंद रोज पहले जहां परिजन के बिछडऩे का गम था, सांत्वना देते रिश्तेदार व परिचित थे, वही अब जश्न सा माहौल। नए कपड़े पहने मेहमानों का हुजूम…हंसी-ठट्ठे के बीच आपस में बतियाते वे ही रिश्तेदार और परिचित। पहरावणी का दौर…कपड़े भेंट करते पीहर पक्ष के लोग। वातावरण में स्वादिष्ट पकवानों की महक। जैसे ही पहरावणी का दौर खत्म हुआ कि जीमण शुरू। मेहमानों की लजीज व्यंजनों से खातिरदारी। साथ ही सैकड़ों लोगों को बर्तन आदि की ‘लेण’ का वितरण। जाने वाले का अपना परिजन इस दुनिया से गया और पीछे मंड गया मेला और लग गई उस परिवार को भारी आर्थिक चपत। यह विडम्बना है समाज की जिसे मृत्युभोज कहा जाता है।

अन्य समाजों की तरह नामदेव समाज में भी यह कुप्रथा बरसों से चली आ रही है, मगर संतोषजनक बात यह है कि अब नामदेव समाज जाग्रत हो गया है। विगत कई बरसों से विभिन्न मंचों पर मृत्युभोज के खिलाफ आवाज उठने लगी है। इस अलख को और तेज करने तथा मृत्युभोज के खिलाफ लोगों को जागरूक करने के लिए ‘नामदेव न्यूज डॉट कॉम’ newsnazar.com ने परिचर्चा का आयोजन किया। नामदेव समाजबंधुओं से उनके विचार आमंत्रित किए। कई बंधुओं ने इस कुप्रथा के खिलाफ खुलकर विचार व्यक्त किए।

करनी होगी पहल

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मृत्युभोज प्रथा को अब त्यागना होगा। बदलते समय व परिवेश को देखते हुए यह प्रथा खत्म करने में ही समझदारी है। समय व धन के अपव्यय को रोकने के लिए समाज की आधुनिक पीढ़ी व प्रबुद्ध वर्ग को मिलकर पहल करनी होगी। किसी के निधन के पश्चात शोकसभा व श्रद्धांजलि कार्यक्रम एक ही दिन रखा जाए। अलबत्ता दूरदराज से आने वाले अतिथियों के लिए ही सादा भोजन बनाया जाए। अन्य सभी लोग कंठी प्रसाद ग्रहण कर शोकाकुल परिवार को सांत्वना प्रदान करें। ऐसा करके ही मृत्युभोज प्रथा को समाप्त किया जा सकता है।

-पारसमल गहलोत, सादड़ी (वापी)

नई दिशा के लिए

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मृत्युभोज एक सामाजिक बुराई है और अब समय आ गया है कि इस बुराई को मिटा दिया जाए। मैं व्यक्तिगत रूप से इस बुराई के अंत में जुटा हूं और हरसंभव कोशिश है कि समाजबंधु भी इस बुराई को जल्द से जल्द तिलांजलि दें। मृत्युभोज बंद होने से ही समाज को नई दिशा मिलेगी।
राजेश पाटनेचा, सचिव, राजस्थान टेनिस संघ जयपुर एवं सचिव नामदेव छीपा समाज पाली

ये कैसा भोज…?

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मृत्युभोज…सुनकर ही दिल में पीड़ा होती है कि एक तो अपना प्रियजन हमेशा-हमेशा के लिए बिछड़ गया और उसी उपलक्ष्य में भोज का आयोजन करना कहां की समझदारी है। सरासर इस कुप्रथा को हमें खत्म करना चाहिए। इसके लिए हमें आयोजनकर्ता को समझाना होगा कि केवल दिखावे के लिए वह मृत्युभोज जैसी बुराई को बढ़ावा ना दे। अगर फिर भी नासमझी में कोई यह आयोजन करे तो हमें मृत्युभोज का बहिष्कार करना चाहिए। शायद बुजुर्ग वर्ग का हमें सहयोग ना मिले लेकिन युवा अवश्य इस बुराई के खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे। इसके अलावा मृत्युभोज के खिलाफ कानूनी प्रावधान भी है। इसके तहत आयोजनकर्ता को कड़ी सजा हो सकती है। यह बात सभी जागरूक समाजबंधुओं को समझनी होगी और इस कुप्रथा को खत्म करना होगा।
राजेंद्र एम.छीपा, मुंबई

सजा का है प्रावधान

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सामाजिक कुरीतियों के खात्मे लिए आजादी के बाद से ही भारत सरकार ने कई प्रयास किए। इसी कड़ी में ‘मृत्युभोज निषेध अधिनियम 1960’ पारित किया। इसके तहत मृत्युभोज करने वाले आयोजकों के साथ ही उनके सहयोगियों को भी दंडित करने का प्रावधान है।

छोडऩा होगा लिहाज

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मृत्युभोज, नुकता, मौसर, गंगा-प्रसादी चाहे जो कह लीजिए। होता यह है कि मृतक की याद में होने वाले इस आयोजन के बाद कई परिवार कर्ज में डूब जाते हैं। इसके बावजूद लोग इस बुराई को पाले हुए हैं। ‘लोग क्या कहेंगे, समाज क्या कहेगा’ इसी डर में अपनी मेहनत की कमाई पाई-पाई तक खर्च कर देते हैं। सम्पन्न परिवार अपनी सामथ्र्य दिखाने के लिए तो गरीब परिवार केवल लिहाज के लिए इस बुराई को अपनाए हुए हैं। खाया है तो खिलाएंगे भी! यह सोच उन्हें आगे बढऩे के बजाय पीछे धकेल रही है।
नई सोच को प्रणाम
विकास की बगिया में अगर एक भी बुराई का बबूल हो तो उस उपवन का आनंद नहीं उठाया जा सकता। इसी तरह विकासशील नामदेव समाज बिना कुरीतियां त्यागे आगे नहीं बढ़ सकता। इसी बात को समझते हुए कई शहरों के नामदेव समाज ने मृत्युभोज का त्याग करने की घोषणाएं कर रखी हैं। कई संस्थाओं ने तो बकायदा निर्णय पारित किए हैं।
फिर भी क्यों विषबेल हरी
दरअसल मृत्युभोज जैसी कुप्रथा कुछ पुरातनपंथी लोगों की वजह से ही अब तक अस्तित्व में है। मृत्युभोज को मृतक की आत्मशांति से जोड़कर प्रस्तुत किया जाता है। जबकि ऐसा नहीं है। अलबत्ता मृतक की याद में केवल कुछ ब्राह्मणों को भोजन कराया जा सकता है। उसकी आत्मशांति के लिए गाय को चारा या अन्य कोई दान-पुण्य किया जा सकता है।

 

(विशेष : नामदेव न्यूज डॉट कॉम मृत्युभोज के खिलाफ अपना अभियान जारी रखेगा। अन्य समाजबंधु भी अपनी प्रतिक्रिया व फोटो हमें भेज सकते हैं। उन्हें अगली कड़ी में प्रकाशित किया जाएगा।)

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