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नवरात्र आज से शुरू, शैलपुत्री की हो रही पूजा-आराधना

shail putri

 नवरात्र का पर्व साल में चार बार आता है। चैत्र और अश्विन माह में जो नवरात्र आता है, उसे तो सब जानते हैं, लेकिन दो अन्य नवरात्र भी हैं जो गुप्त हैं। ये दो गुप्त नवरात्र अषाढ़ और माघ मास में पड़ते हैं। चैत्र और अश्विन मास के नवरात्र को विशेष रूप से मनाया जाता है।

नई दिल्ली।।  देशभर में शक्ति की उपासना का पू नवरात्र आज से शुरू हो गए है। आज तमाम छोटे बड़े मंदिरों में लोग चैत्र नवरात्र के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा और दर्शन के लिए पहुंचने लगे। नवरात्र के पहले दिन देवी के पहले रूप माता शैलपुत्री की आराधना पूरे विधि विधान से की जाती है। मां शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं और नवरात्र पर्व के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा होती है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार देवी का यह नाम हिमालय के यहां जन्म होने से पड़ा।

इस बार चेत्र नवरात्र आठ दिन के होंगे। तृतीय नवरात्र तिथि का क्षय हो रहा है। नवरात्र के दौरान पहली पूजा आठ अप्रैल को और समापन 15 अप्रैल को होगा। प्रथम नवरात्र दोपहर एक बजकर सात मिनट तक होगा। दूसरा नवरात्र शनिवार को रात 9 बजकर 24 मिनट तक और तृतीय रविवार तड़के 5 बजकर 58 मिनट तक होगा। इसके बाद चैथा नवरात्र लग जाएगा।

पंडितों के अनुसार, नवरात्र के पहले दिन मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें हरियाली के प्रतीक जौ को बोने चाहिए। मिट्टी या तांबे के कलश को विधिपूर्वक स्थापित करने के बाद मां की प्रतिमा स्थापित करें। मां के पूजन से पहले भगवान गणेश का पूजन करें और फिर दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। दून सहित पूरे प्रदेश के मंदिरों में आज सुबह लोग माता के दर्शन और पूजन के लिए पहुंचे। आज सुबह से ही मंदिरों में ‘जय माता दी’ की गूंज सुनाई दे रही है।

बताया जाता है कि नवरात्रों में मां दुर्गा अपने असल रुप में पृथ्वी पर ही रहती है। इन नौ दिनों में पूजा कर हर व्यक्ति माता दुर्गा को प्रसन्न करना चाहता है। जिसके लिए वह मां के नौ स्वरुपों की पूजा-अर्चना और व्रत रखता है। जिससे मां की कृपा उन पर हमेशा बनी रहें। नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा की जाती है।
पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा।पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या थीं, तब इनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था। प्रजापति दक्ष के यज्ञ में सती ने अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती और हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार, इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था। नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री का महत्व और शक्तियां अनन्त हैं।

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