न्यूज नजर : हे जगत सराय के मुसाफिर तूने अपनी जीत के लिये मुझे जला डाला ओर राख़ बना डाला । मै जलती रही और तू आनंद मना रहा था, चंग की थाप पर उमंगो के वीर रस के डंडे बजा रहा था। मन के आंगन में फैली गंदगी को …
Read More »श्रद्धा पूजती रही, अहंकार जलता रहा…
अहंकार के आभूषण पहन कर व्यक्ति संस्कार व संस्कृति को ठोकर मार जब आगे निकलने लगता है तो काल के पंजे का एक चांटा पड़ता है।… फिर भी वो रावण की तरह अपने कुनबे का नाश करा कर भी चुप नहीं बैठता और कुछ ऐसे ठुकराए हुए और ठोकर खाए …
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