संतोष खाचरियावास @ अजमेर
नादान किसान अब पछतावा कर रहा है। गुड़ाई के लिए जिन चूहों को मुफ्त का मजदूर समझकर खेत हवाले किया था, वे तो मजदूर की बजाय मजे लेकर दूर होने वाले निकले। खेत के साथ-साथ कोठरी का माल भी गायब कर दिया!
एक-एक बिल खंगालने की ठानी। पहले दाएं और बाएं ‘हाथ’ की तरफ के बिल खोदे तो अपनी कोठरी से बड़ी कोठी देख हैरान रह गया। सरकार ने जनता जनार्दन के लिए जो कुछ माल भेजा था वह यहां पड़ा मिला। जबकि उसकी कोठरी में केवल योजनाओं का पम्फलेट ही पहुंचा था। खैर…
…कोठी के अगले कमरे में देखा तो और हैरानी हुई। बापू की तस्वीर वाले कोने में नोटों के ढेर, पट्टे और काली-धौली करनी के कागजात बिखरे पड़े थे।
अगले कमरे में देशभक्ति गीत बज रहा था और दीवारें मेरा भारत महान के नारों से सजी थीं। मन कुछ हल्का हुआ…फख्र भी महसूस हुआ…तभी नीचे फर्श पर पड़ा गांव का आधा कुतरा हुआ नक्शा देख सिर चकरा गया। वह बिल से बाहर की तरफ भागा…।
थोड़ी देर बाद हिम्मत जुटाकर ‘डिफरेंस’ वाले बिल को खंगाला। यह भी अंदर से कोठी जैसा ही मिला। अगले कमरे में झांका तो झटका लगा। उसकी कोठरी में रखी रामजी की मूर्ति अब यहां…! चूहे उसे तक खींचकर इस बिल में ले आए !!
अगले कमरे में देखा तो एक तरफ देशभक्ति की पोटलियों के ढेर लगे तो दूसरी तरफ आदर्शों की अंगीठी औंधी पड़ी थी। आसपास वही नोटों के ढेर…पट्टे और काली-धौली करनी की कतरनें…!
कोई ज्यादा फर्क नहीं…
अरे ये क्या.. ? गांव के नक्शे का आधा कुतरा हुआ हिस्सा तो इस बिल में पड़ा है !!
बेचारा वही किसान गश खाकर गिर पड़ा !!