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परीक्षा से पहले अग्नि परीक्षा आखिर कब तक ???

 

सन्तोष खाचरियावास @ अजमेर

मर्ज में हर्ज तो होना ही है…ऑपरेशन कराना है तो फिर ओटी के दस्तूर भी निभाने पड़ते हैं। बिना चू-चपाट किए लेटने से लेकर एनैस्थीशिया ठुकवाने तक मरीज वही करता है जो ओटी के आका कहते हैं, चेत खोने के बाद का उसे क्या पता! हां, पोस्ट ऑपरेटिव में आकर जब वह धीरे-धीरे आंखें खोलता है तो उसके जेहन में आंखों के ऊपर झुकी बड़ी-बड़ी लाइटें और हरे कपड़े पहने फरिश्ते लहराते दिखते हैं। अगले ही पल सिर को झटका देकर और इन्हें भूल भालकर मरीज अपनी बीमारी, अपनी पीड़ा दूर होने के सपनों में खो जाता है… ऑपरेशन से पहले कपड़े बदलवाने और जेवर, डोरे उतरवाने की रस्म को भुलाना भी आसान नहीं होता…!

बिल्कुल यही रस्में अब परीक्षा केंद्रों पर बेरोजगारों से अदा कराई जा रही हैं। परीक्षार्थी चाहे महिला हो या पुरुष, ओटी की तमाम रस्में उनके साथ भी दोहराई जाने लगी हैं। ताबीज गण्डा तो दूर, गले में मंगलसूत्र तक गवारा नहीं होता। कान सूने…गला सूना…हाथ सूने दिखने चाहिए…! ड्रेस भी ऐसी हो कि उसमें कोई ‘आपत्तिजनक वस्तु’ छिपाई न जा सके। जैसे ओटी के लिए प्रिपेयर करते समय मरीज की पूरी ‘सफाई’ की जाती है, ठीक वैसे ही अब परीक्षा केंद्रों पर अभ्यर्थियों के साथ ट्रीट होने लगा है।
बेचारे…बेचारी, जैसे निर्देश मिलते हैं, वैसे ही फॉलो करते जाते हैं। कहीं लंबी बांह वाले ब्लाउज की बांह काट दी जाती है तो कहीं चुन्नी उतरवा ली जाती है। कहीं ‘हुक’ की वजह से ब्रा को ही बदर कर दिया जाता है!
लानत है ऐसे इंतजामों पर जिनमें पढ़े-लिखे बच्चों से लेकर टीचर की नौकरी पाने जा रहे अभ्यर्थियों तक के साथ ऐसा सलूक होता है।
बेचारे…बेचारी, परीक्षा देने से पहले ही न जाने कितनी परीक्षा से गुजर जाते हैं। न जाने किस वजह से सेंटर से बाहर निकाल दिया जाए, इसी खौफ में हर उस हिदायत को चुपचाप फॉलो करते रहते हैं जो परीक्षा केंद्र के कर्ताधर्ता उन्हें देते रहते हैं।
सुखद भविष्य की उम्मीद में अभ्यर्थी ठीक वैसे ही कठपुतली बनकर हर बात मानने को मजबूर है, जैसे ओटी के आका कहते हैं… फर्क सिर्फ इतना सा है कि वहां मरीज निश्चेतन अवस्था में जाने वाला होता है जबकि परीक्षा केंद्र में अभ्यर्थी को अपनी तमाम चेतना, ऊर्जा और बुद्धि को बटोरकर अगले दो-तीन घण्टे तक उत्कृष्ट प्रदर्शन करना होता है।
परीक्षा से पहले की ‘परीक्षा’ उनके हौसले और आत्मसम्मान को कितनी ठेस पहुंचाती है, यह परीक्षा केंद्र के कर्ता-धर्ताओं के साथ-साथ उस सरकार को भी समझना होगा जो चुनिंदा नकलखोरों की वजह से हर बार हजारों-लाखों अभ्यर्थियों को ‘अग्नि परीक्षा’ से गुजरने को मजबूर करती है।
परीक्षाओं में नकल रोकने के लिए ‘केरल मॉडल’ लागू करने जा रही सरकार आने वाले दिनों में अगर अस्पताल में मरीज को दी जाने वाली ‘ओटी ड्रेस’ की तरह अभ्यर्थियों को भी खास तरह की ‘एग्जाम ड्रेस’ पहनने के लिए बाध्य करने लगे तो कोई बड़ी बात नहीं है… वैसे नौबत तो यही है!!

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