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नामदेव बंधुओं बहस नहीं , मंथन कीजिए

मेरे समाज बंधुओं..

समाज सर्वोपरि है, समाज के बिना नहीं व्यक्ति का अस्तित्व है और नहीं समाज बिना व्यक्ति का वजूद…

अरस्तू ने सही कहा जो व्यक्ति समाज में नहीं रहता या तो पशु है या भगवान….

हमेशा सुनता आया की समाज के पंचों के फैसले दैवीय और न्यायक फैसले होते हैं….

 

समाज में बडे बडे समाज सेवक, कई बडे बडे सरकारी कर्मचारी, कई बडे बडे बिजनेस मेन, कई बडे बडे विद्वान, कई बडे बडे राजनीतिज्ञ..और भी बहुत कुछ….

पर मुझे विश्वास नहीं होता इस परगने में आज भी मृत्युभोज कैसे कुंडली मारकर बैठा है।

जिस परगने में इस तरह की हस्तियां विधमान हो वहां इस तरह की छोटी सोच कैसे हावी हो सकती है….

जिनके उपर पुरे समाज को नाज हो वो लोग मृत्युभोज के खिलाफ उठी आवाज को कैसे दबा सकते हैं।

समाज के साथ इस तरह का अन्याय कैसे हो सकता है।

समाज को अंधविश्वास के गर्त में कैसे धकेल सकते हैं।

जहां पर किसी के गुजरने का दर्द हो, जहां मातम का माहौल हो, जहां हर कृत्य आसुओं से भिगा हो वहां मीठा भोजन किसी के गले में कैसे उतर सकता है।

मुझे यह कहने में कोई दिक्कत नहीं की जो लोग मृत्युभोज को बढावा दे रहे हैं वो समाज और राष्ट्र के गुनाहगार है… आपकी समाज सेवा संदेह के घेरे में है।

मैं आप मुझे इतना अवश्य बताए आप मृत्युभोज से समाज को क्या फायदा होगा….?

जिसकी वजह से आपने मृत्युभोज के खिलाफ आवाज को अनसुना कर दिया….

मेरे मेसेज पर बहस की नही मंथन की जरूरत है…

मेरे विचारों पर राजनीति की नहीं निर्णय की आवश्यकता है।

✍छगनलाल बी-छीपा बरलूट (पुणे )जनकल्याण मंच संचालक ????