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रेस्क्यू सेंटर बना शेर और बाघों का डेथ सेंटर


दो सालों में हुई एक दर्जन से ज्यादा मौतें
-प्रशासन नहीं दे रहा कोई ठोस जवाब
जयपुर। कभी सर्कस में अपनी दहाड सुनाकर दर्शकों की तालियां बटोरने वाले शेर और बाघों के लिए बनाया गया नाहरगढ़ रेस्क्यू सेन्टर इन दिनों डेथ सेंटर बना हुआ है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में चल रहे सर्कसों में से अत्याचार के नाम पर मुक्त कराए गए ये वन्य जीव यहां अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं। 2002 में बनाएं गए इस रेस्क्यू सेन्टर में इन वन्यजीवों को बसाया गया था। 2006 में यहां पर इनकी संख्या 52 थी लेकिन एक के बाद एक हो रही मौतों से अब इनकी संख्या घटकर महज 16 रह गई है। पिछले दो सालों में ही लगभग एक दर्जन से ज्यादा वन्य जीवों की मौत हो चुकी है। प्रशासन के अनुसार इनकी मौतों का कारण उनकी उम्र अधिक होना है।
 तीन सालों में खाली हो जाएगा
इनकी मौतो का अदांजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले आठ महिने में आठ वन्य जीवों की मौत चुकी है। इनकी मौतों का सिलसिला ऐसे ही जारी रहा तो आने वाले तीन सालों में यह रेस्क्यू सेन्टर खाली हो जाएगा। पिछले कुछ सालों से एकाएक इनकी मौतों में हुए इजाफे से इस बात को और बल मिलता है। अगर यह सिलसिला ऐसे ही जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब इन जीवों की जगह इनके किस्से ही रह जाएंगे।
प्रजनन पर है रोक
सरकार भी इनको लेकर दोहरे मापदडं अपना रही है। एक तरफ तो इनकी अवैध तस्करी को रोकने के नाम पर लाखों-करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रही है वहीं दूसरी तरफ केन्द्रीय चिडिय़ाघर प्राधिकरण ने शेरो के प्रजनन पर रोक लगा रखी है। रोक के पीछे यह तर्क है कि प्रजनन से बढने वाले इनके कुनबे का खर्च कौन उठाएगा।
राज्य सरकार और केन्द्र सरकार ने इन वन्य जीवों की देखरेख के लिए अलग से अपने कर्मचारी लगा रखे है। इसके बावजूद भी लगातार एक के बाद एक मौतें हो रही हैं। सन् 2002 में रेस्क्यू सेंटर में 3वन्य जीव थे, इनकी संख्या 2006 में 52 थी। उसके बाद लगातार हो रही मौतों से अब इनकी संख्या घटकर 16 रह गई है। जिसमें 10 शेर, 6 बाघ बचे हैं। इनमें से सबसे बुजुर्ग शेर राजा की मौत दो महिने पहले ही हुई है।