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मछलियां भले ही मरे, ‘मगर’ तो पल रहे हैं ना !

सन्तोष खाचरियावास @ अजमेर

अजमेर का आनासागर कहने को 16-18 गन्दे नालों का संगम है लेकिन इसी आनासागर के बहाने बरसों से कई मगरमच्छ पल रहे हैं। झील में मछलियों को भले ही ऑक्सीजन नहीं मिल रही हो लेकिन मुस्टंडे मगरमच्छ मस्त हाल हैं।

इस बेजान झील में जान फूंकने के नाम पर पिछले सालों में करोड़ों रुपए डुबोए गए। यही माल निगल-निगलकर मगरमच्छ मोटे-ताजा होते गए। कभी झील के चारों तरफ लोहे का जाल बुनकर तो कभी वापस उस जाल को कुतरकर इन मगरमच्छों की पीढियां निहाल हो गई। कभी फव्वारों के नाम पर तो कभी सौन्दर्यकरण के नाम पर मिले करोड़ों रुपए उस वक्त बेमानी हो गए जब चूना-फिटकरी डालने की नौबत आ गई।

राष्ट्रीय झील संरक्षण मिशन हो या स्मार्ट सिटी लिमिटेड की स्मार्ट सोच, कोई भी बेचारी मछलियों को बचाने का बेसिक फंडा तक नहीं समझ सकी।

सालभर झील की सफाई के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। डी-वीडिंग मशीन से लेकर लम्बे-लम्बे बांस वाले मजदूर तक इस गन्दगी से पार नहीं पा रहे हैं। जलकुंभी, काई और कचरा खाकर इन मगरमच्छों की चमड़ी और मोटी होती जा रही है… अबकी बार चूना-फिटकरी निगलने को तैयार हैं।

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