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बीजेपी-कांग्रेस ने हारे हुए घोड़ों को आमने-सामने उतारा, मुकाबला दिलचस्प

सन्तोष खाचरियावास

अजमेर।

रामचन्द्र चौधरी

अगर थे मनै कोणी जितायो तो म्हने लकड़ी देबा तो जरूर आ जाइजयो! 16 साल पहले मतदाताओं से यह मार्मिक अपील करने के बावजूद अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचन्द्र चौधरी तब मसूदा से विधानसभा चुनाव हार गए थे। उसके पांच साल बाद फिर मसूदा से चुनाव मैदान में उतरे और फिर हार गए। इससे पहले भी मसूदा और भिनाय से किस्मत आजमाई लेकिन बेड़ा पार नहीं हुआ था। यानी कुल 4 बार विधानसभा चुनाव हार चुके रामचन्द्र पर इस बार कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में दांव लगाकर सबको चौंका दिया है।

 

भागीरथ चौधरी

उधर, बीजेपी ने भी हारे हुए घोड़े को फिर से रेस में उतारकर मतदाताओं को पसोपेश में डाल दिया है। बीजेपी ने चार महीने पहले विधानसभा चुनाव में हार का सामना कर चुके निवर्तमान लोकसभा सदस्य भागीरथ चौधरी को फिर से लोकसभा भेजने के लिए मैदान में उतार दिया है।

 

इधर बीजेपी ने भागीरथ का नाम घोषित किया और उधर कांग्रेस ने रामचन्द्र को टिकट दे दिया। जाट बनाम जाट। दोनों प्रतिद्वंद्वी एक ही समाज से होने के साथ-साथ आपस में समधी भी बताए जा रहे हैं।
बीजेपी के टिकट ने जहां भाजपाइयों को झटका दिया है, वही कांग्रेस के टिकट ने भी कांग्रेसियों के मन की होली चेता दी है।
बीजेपी में टिकट के लिए दावेदारों की फहरिस्त लम्बी होती जा रही थी। अबकी बार 400 पार के नारे के साथ मोदी-शाह की जोड़ी फिर से धुंआधार जीत की चौसर बिछा चुकी है। ऐसे में हर दावेदार को यह लग रहा था कि टिकट मिलते ही बिना मेहनत जीत पक्की।
मगर टिकट की घोषणा होते ही बाकी दावेदारों के अरमान उतनी आसानी से ठंडे हो गए जितनी आसानी से उन्होंने लोकसभा में एंट्री का ख्वाब देखा था।
इधर, कांग्रेस में रामचन्द्र के टिकट ने खुद रामचन्द्र को भी चौंका दिया होगा, यह तय है। इसकी वजह यह है कि विधानसभा चुनाव तक जीतने में नाकामयाब रहे शख्स को कांग्रेस लोकसभा का टिकट भी दे सकती है, यह गले उतरने वाली बात नहीं है।
दूसरी बात यह तय है कि रामचन्द्र को टिकट देने के मुद्दे पर सिर्फ अशोक गहलोत की चली होगी। साथ ही यह भी तय है कि टिकट नहीं देने के मुद्दे पर सचिन पायलट की बिल्कुल नहीं चली होगी।
कहने को रामचन्द्र जिलेभर के दूधियों के नेता हैं लेकिन सच्चाई यह है कि इन्हीं दूधियों के बूते पर जिले की ज्यादातर विधानसभा सीटें बीजेपी जीतती रही है। खुद रामचन्द्र ही अपना ‘जावण’ नहीं जमा पाए थे।

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16 साल पहले रामचन्द्र ने कांग्रेस के टिकट पर मसूदा से विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन कांग्रेस के बागी ब्रह्मदेव कुमावत ने उनका दही नहीं जमने दिया था। नतीजतन रामचन्द्र चुनाव हार गए।
इसके अगले चुनाव में कांग्रेस ने ब्रह्मदेव को टिकट दिया तो रामचन्द्र ने उनका रायता फैला दिया था।
अब रामचन्द्र का रायता फैलेगा या नहीं, कोई नहीं जानता।
रामचन्द्र अपने ही समाज के वोट भागीरथ की तरफ जाने से रोक पाएंगे या नहीं, वक्त बताएगा। फिलहाल अजमेर संसदीय सीट का चुनाव केवल जाट मतदाताओं के इर्दगिर्द सिमट गया है। बाकी समाज केवल मतदाता बनकर रह गए हैं।

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