अजमेर। शहर के रामगंज मुख्य बाजार एक सप्ताह में ही नगर निगम की जमीन पर अवैध दुकान खड़ी हो गई है। सीधे ही कमिश्नर के पास मौखिक शिकायत भी पहुंची लेकिन उन्होंने यह कहकर कन्नी काट ली कि लिखित शिकायत के बिना हम कुछ नहीं कर सकते।
दरअसल मामला एक शराब की दुकान का है। रामगंज में गुरुद्वारा के सामने शराब की दुकान संचालित है। दुकान के पास ही खाली जमीन पड़ी थी। कुछ समय पहले शराब दुकान संचालक ने इस खाली जमीन को भी दुकान की हद में शामिल करते हुए दुकान बड़ी बना ली और नगर निगम ने आंखें बंद रखी। सरकारी जमीन हड़पने के बाद भी शराब ठेका संचालक यही नहीं रुका। पिछले दिनों उसने इस अवैध दुकान के ऊपर भी लम्बी-चौड़ी दुकान बनाना शुरू कर दिया।
दो दिन में ही ईंटों की चिनाई कर दुकान खड़ी कर ली। इसी बीच क्षेत्र के जागरूक लोगों ने एक पत्रकार के जरिए नगर निगम आयुक्त तक शिकायत पहुंचाई लेकिन निगम प्रशासन के कानों पर जूं नहीं रेंगी।
उधर, अवैध दुकान पर पलस्तर हो गया, पुट्टी हो गई, खिड़कियां लग गई लेकिन निगम का कोई नुमाइंदा मौके पर नहीं पहुंचा। अब मुख्य बाजार में अवैध रूप से बनी यह दो मंजिला दुकान पूरी तरह बनकर तैयार है।
नीचे बनी दुकान में ही लोहे की सीढ़ी लगाकर ऊपरी दुकान में जाने का रास्ता बनाया गया है। जहां ऊपर ग्राहकों को बैठाकर शराब भी पिलाई जा सकेगी, यानी अवैध बार भी खुलने की आशंका है।
मिलीभगत की इंतेहा
शहर के गली कूचों में बजरी- ईंट देखते ही नगर निगम के जमादार मौके पर पहुंच जाते हैं और भवन मालिक से निर्माण की मंजूरी सम्बंधित दस्तावेज मांगते हैं लेकिन रामगंज में बीच बाजार अवैध दुकान खड़ी होने के बावजूद किसी की नींद नहीं खुलना साफ तौर पर मिलीभगत का प्रमाण है।
पुलिस भी सो रही
शराब की दुकान के ऊपर एक और अवैध दुकान बनने के बावजूद पुलिस भी सो रही है। इस दुकान से दो सौ मीटर दूर ही रामगंज पुलिस चौकी है लेकिन पुलिस कर्मी अपने हाल में मस्त हैं। हाल ही पुलिस अधीक्षक जगदीश चंद्र शर्मा ने एक आदेश जारी कर शराब की दुकानों में ग्राहकों को बैठाकर शराब पिलाने वालों पर कड़ी कार्रवाई करने की बात कही लेकिन यहां ऊपर बनी अवैध दुकान में ग्राहकों को बैठाकर शराब पिलाने का बंदोबस्त होने के बावजूद पुलिस वालों ने चुप्पी साध रखी है।
आबकारी विभाग ने कैसे दिया लाइसेंस
सरकारी जमीन पर बनी अवैध दुकान में शराब ठेका चलाने के लिए आबकारी विभाग ने कैसे लाइसेंस जारी कर दिया, यह भी जांच का विषय है।
दरअसल, शराब ठेका लेने के लिए दुकानदार को दुकान का नक्शा, ब्ल्यूप्रिन्ट आदि लगाने होते हैं। इस दुकान का केवल एक हिस्सा पुराना बना हुआ है जबकि दूसरा हिस्सा और ऊपरी मंजिल पूरी तरह अवैध है।
रेलवे भी नहीं ले रही सुध
इस शराब की दुकान के पीछे ही रेलवे की संपत्ति है। रेलवे सम्पत्ति के गेट के आसपास जगह छोड़ी गई थी जो अब शराब ठेका संचालक ने हथिया ली है। अब केवल रेलवे सम्पत्ति के गेट जितनी ही जगह बची है।
तो कौन बचाएगा नगर की संपत्ति ?
ताजा मामले ने यह सवाल खड़े कर दिए हैं कि नगर निगम की संपत्तियों की रक्षा कैसे होगी? क्षेत्र के पार्षद ने क्यों आंख मूंद रखी है? आयुक्त ने मामला जानकारी में आने के बावजूद कार्रवाई क्यों नहीं की? नगर निगम का पिछला भाजपा बोर्ड कई कारनामों की वजह से बदनाम रहा है लेकिन अब नया बोर्ड ऐसे मामले रोकने के लिए क्या कर रहा है ?