सन्तोष खाचरियावास
एक बच्चे की ‘खोई’ साइकिल ढूंढकर अजमेर पुलिस के एक सिपाही ने कमाल कर दिया। पिछले दो दिन से हर तरफ पुलिस की वाह वाही हो रही है। क्लॉक टावर थाना प्रभारी दिनेश कुमार के निर्देश पर सिपाही संदीप कुमार ने बच्चे की साइकिल बरामद कर ली। होली पर बच्चे को थाने बुलाकर साइकिल लौटाई तो मासूम खुश हो उठा। यह खबर फोटो सहित एकमात्र दैनिक नवज्योति में पब्लिश हुई। यह खबर आईजी पुलिस लता मनोज कुमार के दिल को छू गई और उन्होंने उसी दिन अपने मातहत आरपीएस अफसरों की बैठक में बुलाकर दोनों पुलिस कर्मियों को सबके सामने सम्मानित किया। इंस्पेक्टर दिनेश कुमार को 5 हजार रुपए और कांस्टेबल संदीप को 1 हजार रुपए का नकद पुरस्कार और प्रशस्ति पत्र देकर हौसला अफजाई की।
इंस्पेक्टर और सिपाही से बड़ा कमाल आईजी मैडम ने कर दिखाया। अब तक जिला पुलिस में बड़े से बड़ा कारनामा करने वाले पुलिसकर्मियों को नकद पुरस्कार के नाम पर ग्यारह-इक्कीस रुपए से लेकर सौ रुपए तक का इनाम मिलता रहा है। हालांकि ग्यारह-इक्कीस रुपए का यह इनाम भी उनके लिए बड़ी अहमियत रखता है। अब आईजी ने इंस्पेक्टर को 5 हजार और कांस्टेबल को 1 हजार रुपए का इनाम देकर एक नई परम्परा की नींव डाल दी है।
इसी तरह बच्चे की साइकिल ढूंढकर पुलिस ने उन सभी फरियादियों की आंखों में उम्मीद की चमक ला दी है जो अपने चोरी हुए सामान, नकदी-जेवरात, वाहन, मोबाइल और ऐसी ही कीमती चीजें वापस पाने का इंतजार कर रहे हैं।
पुलिस साइकिल भी ढूंढ सकती है तो फिर सब कुछ ढूंढ सकती है। वैसे भी सभी जानते हैं कि पुलिस चाहे तो हर चोरी का खुलासा कर सकती है। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि जो चोरियां नहीं खुली, पुलिस उन्हें खोलना नहीं चाहती। खुद क्लॉक टावर थाने में ही चोरी-गुमशुदगी सहित कई केस पेंडिंग पड़े हैं।
चोरी और गुमशुदगी में दिन-रात का फर्क है और यह फर्क पुलिस से ज्यादा बेहतर तरीके से दूसरा कोई समझा भी नहीं सकता। चोरी का केस दर्ज होने पर थाने का रिकॉर्ड खराब होता है, लिहाजा ज्यादातर चोरियां हमारी होशियार पुलिस ‘गुमशुदगी’ में दर्ज करती है। जैसे कि इस साइकिल कांड में हुआ।
साइकिल हुई थी चोरी… लेकिन पुलिस ने ‘खोई’ साइकिल लाकर पकड़ा दी। उस नशेड़ी को नहीं पकड़ा जिसने उस मासूम बच्चे की साइकिल चुराने की जुर्रत की थी। न आईजी ने पूछा न किसी मीडिया कर्मी ने जानना चाहा कि उस नशेड़ी का किस्सा कहां गुलगपड़ कर दिया।
खैर, भला हो उस नशेड़ी का, जिसकी बदौलत पुलिसकर्मियों को यह वाहवाही मिल सकी। उस नशेड़ी को आजाद छोड़ दिया, शायद यह सोचकर कि अगली बार यही बंदा उनके लिए फिर शाबाशी का जुगाड़ कर दे।
बात फिर चोरी और गुमशुदगी के फर्क की। साल 2016 में पत्रकार कॉलोनी में एक पत्रकार के मकान में चोरी हुई। वह क्रिश्चियन गंज थाने पहुंचा। वह चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराना चाहता था जबकि पुलिस इससे बचना चाहती थी। पूरे छह घन्टे तक सीआई थाने पर ही नहीं आए। इन छह घण्टों में एएसआई और दूसरे पुलिसकर्मी रिपोर्ट दर्ज करने में टालमटोल करते रहे।
पुलिस के सयानों ने ‘ऑफर’ दिया, आपके चोरी गए एलपीजी सिलेंडर की जगह हम दूसरा सिलेंडर दिलवा देंगे, चोरी की रिपोर्ट लिखवाने से क्या मिलेगा? पत्रकार अड़ा रहा और चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराकर ही माना। आखिर हुआ वही जो पुलिस ने पहले ही कह दिया था। यानी कुुुछ नहीं हुआ। चोर आज तलक नहीं पकड़े गए। होनहार हैड कांस्टेबल आईओ अपनी तफ्तीश में फेल रहा या पास, एफआर लगा दी या नहीं, अब तक फरियादी को कुछ नहीं पता। पत्रकार यही सोचता रह गया कि काश, वह क्रिश्चियन गंज थाने का पुलिसिया ऑफर मान लेता तो कम से कम उसे सिलेंडर तो वापस मिल जाता। -यह है हमारी अजमेर पुलिस।
आज अखबार के एक पन्ने पर तत्कालीन एसपी राजेश मीणा मंथली कांड की खबर छपी है तो दूसरे पन्ने पर साइकिल कांड के हीरो पुलिसकर्मियों के सम्मान की। -यह है हमारी अजमेर पुलिस।
ऐसा होना भी चाहिए। मार्केटिंग अपनी जगह है और अच्छा काम अपनी जगह। अच्छे काम के लिए इनाम बनता है, मगर जो काम ही न करे, उसके लिए …?