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पेट्रोल पंप संचालकों के हाथ फिर खाली, पब्लिक को भी चुटकीभर राहत

 

सन्तोष खाचरियावास

अजमेर/जयपुर। नवगठित भजनलाल सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर 2 फीसदी वैट कम कर पीएम नरेंद्र मोदी की गारण्टी पर मोहर लगा दी है। उधर, केन्द्र की मोदी सरकार ने भी लोकसभा चुनाव को देखते हुए पेट्रोल-डीजल पर 2 रुपए प्रतिलीटर की कमी कर दी है। यानी डबल इंजन की सरकार का डबल तोहफा। चारों तरफ वाहवाही हो रही है.. ।

मगर हकीकत में सब कुछ प्री-प्लांट है। पिछले डेढ़ साल से अपनी जेब कटवा रहे पेट्रोल डीजल उपभोक्ताओं की हथेली पर दो-चार रुपए की टॉफी रखकर बीजेपी सरकार यूं ढोल पीट रही है जैसे कोई बहुत बड़ी सौगात दे दी हो। इन डेढ़ सालों में पेट्रोलियम कम्पनियां अपना घाटा पूरा करने के बाद करोड़ों रुपए का विशुद्ध मुनाफा कमा रही हैं। इन डेढ़ साल में खुद तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और वर्तमान पेट्रोलियम मंत्री हरदीपसिंह पुरी कई बार पेट्रोलियम कम्पनियों को रेट कम करने का ‘आग्रह’ कर चुके थे लेकिन उन्होंने नहीं माना।

उस समय मोदी सरकार ने एक्साइज ड्यूटी कम कर थोड़ी राहत दी और राजस्थान की तत्कालीन गहलोत सरकार पर वैट कम करने का दबाव बनाया। लेकिन गहलोत सरकार ने वैट कम नहीं किया। नतीजतन राजस्थान ने पेट्रोल डीजल देश में सबसे ज्यादा कीमतों पर बिकता रहा। केन्द्र और राज्य सरकार दोनों हाथों से अपना खजाना भरती रहीं। पेट्रोलियम कम्पनियों की बेतहाशा कमाई देखकर डीलर्स ने भी लगे हाथ बहती गंगा में हाथ हाथ धोने के लिए कमर कस ली। राजस्थान पेट्रोलियम डीलर्स एसोसिएशन के बैनरतले मांग उठाई कि उनका कमीशन भी बढ़ाया जाए। लंबे समय से खर्चे तो बढ़ रहे हैं

लेकिन कमीशन नहीं बढ़ा है। आरपीडीए ने राजस्थान में दूसरे राज्यों के मुकाबले पेट्रोल डीजल महंगा होने की वजह से सीमांत इलाकों के पेट्रोल पम्प बंद होने का मुद्दा भी उठाया। सरकार से वैट कम करने की मांग के साथ साथ अपना कमीशन बढ़ाने और लुब्रिकेंट एवं प्रीमियम तेल जबरन खरीदने का दबाव नहीं बनाने की मांग उठाई। 
आरपीडीए ने विधानसभा चुनाव से पहले पेट्रोल पंपों की हड़ताल कर गहलोत सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की लेकिन जादूगर के आगे उसकी एक नहीं चली। उल्टा कई पम्प संचालक हड़ताल का विरोध करने लगे। ऐसे में हड़ताल फेल हो गई। 
बाद में नई सरकार गठित हुई तो आरपीडीए ने  अपनी मांगें उठाई। सरकार ने सुनवाई नहीं की तो आरपीडीए ने फिर हड़ताल का ऐलान कर दिया। यह भजनलाल सरकार के कार्यकाल की पहली हड़ताल थी। हालांकि इस हड़ताल से अजमेर जिले के पम्प संचालक पहले ही दूर हो गए थे। हड़ताल के अगले ही दिन जयपुर के पम्प संचालकों ने भी हड़ताल से किनारा कर लिया। दूरदराज के पम्पों और हाईवे पर यह हड़ताल सिर्फ दिखावा बनकर रह गई थी।
 
अब लोकसभा चुनाव में मिशन 400 हासिल करने के लिए मोदी सरकार और भजनलाल सरकार ने चुटकीभर लोबान डालकर गजब का सुगन्धित धुआं कर दिया है। इस सुगंध से आम आदमी तो अभिभूत हो रहा है लेकिन पम्प संचालक उदास हैं। उनके स्टॉक में पड़ा हजारों लीटर पेट्रोल डीजल अब उन्हें सस्ता बेचना पड़ रहा है। इससे प्रति पेट्रोल पंप संचालक को एक से दो लाख रुपए का नुकसान हुआ, साथ ही कमीशन भी नहीं बढ़ा है। लुब्रिकेंट और प्रीमियम तेल की जबरन खरीद का भी समाधान नहीं निकला है। ऐसे में पेट्रोल पंप संचालक खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। हड़ताल करने के बाद भी उनके हाथ तो खाली ही रह गए और वे आरपीडीए पदाधिकारियों का मुंह ताक रहे हैं।

 

 

 

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