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नामदेव समाज के गौरव अंतरराष्ट्रीय फड़ चित्रकार पद्मश्री श्रीलाल जोशी का देहावसान

न्यूज नजर डॉट कॉम
भीलवाड़ा। अंतरराष्ट्रीय फड़ चित्रकार, नामदेव समाज के गौरव पद्मश्री श्रीलाल जोशी का आज शुक्रवार शाम 5 बजे देहावसान हो गया। वह विगत दस दिन से अस्वस्थ थे।  82 वर्षीय ” बाऊसा के नाम से प्रसिद्ध जोशी ने विश्वभर में 20 से अधिक देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर देश को गौरान्वित किया है। विश्व के कई प्रसिद्ध संग्रहालयों में उनकी कलाकृतियां अब अमूल्य धरोहर बन चुकी है।

उनकी अंतिम यात्रा कल शनिवार सुबह 9.15 बजे निवास स्थान चित्रशाला सांगानेर गेट से रवाना होकर पंचमुखी मोक्ष धाम जाएगी।

जोशी अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं। उनके पुत्र कल्याण जोशी एवं गोपाल जोशी फड़ चित्रकारी के जाने माने कलाकार हैं और राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।

आपका जन्म 5 मार्च 1931 को भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा में हुआ था। उनका परिवार कई पीढ़ियों से फड़ पेंटिंग के पारंपरिक कलाकारों के रूप में जाना जाता है। उनके पिता रामचंद्र जोशी ने 13 साल की उम्र में ही उन्हें इस पारंपरिक पारिवारिक कला में शामिल कर लिया। पिछले छह दशकों में उन्होंने अपने काम के माध्यम से राजस्थान की लोक चित्रकला की विभिन्न शैलियों में समृद्ध अनुभव प्रदर्शित किया है। उन्होंने समकालीन शैली विकसित करके फाड़ चित्रकला की कला को पहचान और प्रसिद्धि का नया आयाम प्रदान किया है। उन्होंने अपनी खुद की शैली विकसित की है। उन्होंने कई नई तकनीकों की खोज की और काफी मौलिक और सार्थक रचनाओं को चित्रित किया। वह फड़ के अलावा अपने दीवार चित्रों के लिए भी प्रसिद्ध थे। उन्हें अपनी दीवार पेंटिंग के लिए शिल्प संग्रहालय, नई दिल्ली से राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। वे प्राचीन फ्रेस्को शैली में दीवार पेंटिंग करते थे। हाथी, घोड़े, शेर और सिर पर घड़ा लिए हुए महिलाएं उनके चित्रों के सामान्य रूपांकन हैं।

उन्होंने देवनारायण महागाथा, हल्दीघाटी की लड़ाई और पद्मिनी का जौहर(आत्मदाह), महाराणा प्रताप का जीवन, पृथ्वी राज चौहान, रानी हादी, पद्मिनी, ढोला मारू, अमर सिंह राठौड़, बुद्ध, महावीर और गीतागोविन्दम की कहानी, रामायण, महाभारत और कुमारसंभव धारावाहिक के प्रसंगों के आधार पर इस पारंपरिक कला के लिए नए विषयों के साथ छोटे आकर की फाड़ चित्रकला चित्रित तथा प्रस्तुत की। टुकराज़ (लघु टुकड़े) चित्रकला उनके द्वारा प्रस्तुत की गयी है। भोपा के अलावा पारंपरिक लोक गायक-पुजारियों, उनकी कृति के खरीदारों में कला गुणज्ञ, पर्यटक, निजी और सरकारी वाणिज्य स्थान और निजी कला वीथी शामिल है। उनके द्वारा बनाई गयी कृतियों को आप विभिन्न संग्रहालयों के संग्रह में भी देख सकते हैं जिनमें नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला संग्रहालय, राष्ट्रीय शिल्प संग्रहालय और संस्कृति संग्रहालय, हरे कृष्ण संग्रहालय, कुरुक्षेत्र, भारतीय लोक कला मंडल उदयपुर, जवाहर कला केंद्र जयपुर, लिन्डेन संग्रहालय, जर्मनी, लेफोरेट संग्रहालय, जापान, अल्बर्ट संग्रहालय, लंदन, लंदेस संग्रहालय, ऑस्ट्रिया, स्मिथ सोनियन संग्रहालय, वाशिंगटन, सिरैक्यूज़ विश्वविद्यालय, संयुक्त राज्य अमरीका एतेनोग्रफिस्का संग्रहालय, स्टोल्खोल्म और सिंगापुर, जर्मनी, नीदरलैंड और फ्रांस के संग्रहालय भी शामिल है।

उनके बेटे, कल्याण और गोपाल भी इस प्रकार की कला के उल्लेखनीय कलाकार है।

कई अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय पुरस्कार के रूप में श्री लाल जोशी की विशिष्ट शैली को पहचान प्राप्त हुई। उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार, पद्मश्री पुरस्कार (2006) और शिल्पगुरु पुरस्कार (2007) मिले हैं। भारत सरकार ने उनकी प्रसिद्ध रचना श्री देवनारायण के फड़ चित्र के ऊपर 5 रुपये का डाक टिकट जारी किया।