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अजमेर। नवसंवत्सर समारोह समिति ने नगर निगम के सहयोग से नववर्ष की पूर्व संध्या पर शनिवार को रीजनल कॉलेज चौपाटी पर विक्रम मेला आयोजित किया। इसमें भारतीय संस्कृति जीवंत हो उठी। एक तरफ मानव कल्याण के लिए दीपदान हो रहा तो दूसरी ओर राष्ट्र रक्षा के लिए हवन में आहुतियां दी जा रही थीं।
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एक तरफ सम्मानीय बुजुर्गों व अन्य विशिष्ट लोगों का सम्मान हो रहा था तो दूसरी ओर बच्चे ऊंट, घोड़े और बग्घी की सवारी का लुत्फ उठा रहे थे। कठपुतली नाच, ढोल, कच्छीघोडी नृत्य आदि की भी धूम मची थी।
आयोजकों ने बच्चों के लिए आइसक्रीम, गुड़िया के बाल, झूलों सहित ऊंट घोड़े बग्घी की सवारी की मुफ्त व्यवस्था की लेकिन इनके लिए कूपनों की मारा-मारी मची रही। कई अभिभावकों को जेब से रुपए खर्च कर बच्चों को मेला घुमाना पड़ा।
दरअसल आयोजकों ने हर मुफ्त चीज के लिए कूपन छपवाए थे। पार्षदों व अन्य कार्यकर्ताओं के जरिए ये कूपन एक दिन पहले ही बांट दिए गए। ऐसे में आमजन तक न तो कूपन पहुंच पाए और ना ही मौके पर कूपन वितरण की कोई व्यवस्था थी। मेले में बच्चों को खाद्य सामग्री और सवारी आदि मुफ्त मिलने की अखबारों में खबर पढ़कर बड़ी संख्या में अभिभावक बच्चों को लेकर मेले में पहुंचे। मगर वहां कूपन नहीं होने के कारण उन्हें जेब से राशि खर्च कर दोगुने दामों पर बच्चों की फरमाइश पूरी करनी पड़ी। जिनके पास कूपन थे, उन्हें तो ऊंटगाड़ी, घोड़े और बग्घी वालों ने मुफ्त सवारी कराई लेकिन जिन बच्चों के पास कूपन नहीं थे, उनके अभिभावकों से प्रति बच्चा 50 रुपए किराया लिया गया। इसी तरह दूसरी सामग्री के भी दाम वसूले गए। अलबत्ता जिनके पास पहले ही कूपन पहुंच गए, उन्होंने मुफ्त झूलों, सवारी और खाद्य सामग्री का लुत्फ उठाया।
अभिभावकों का कहना था कि मौके पर भी कूपन वितरण की व्यवस्था होती तो अभिभावकों-बच्चों को निराश नहीं होना पड़ता।
मेला आयोजकों ने कूपन की व्यवस्था इसलिए की थी ताकि एकत्र कूपन के आधार पर खाद्य सामग्री वालों, झूलों वालों और सवारी वालों को भुगतान किया जा सके। लेकिन कूपन की बजाय अगर कार्यकर्ता अपनी निगरानी में सभी बच्चों को वैसे ही मुफ्त सुविधा उपलब्ध कराते तो अभिभावक इस समस्या से बच सकते थे।