सन्तोष खाचरियावास @अजमेर
नगर निगम आयुक्त देशलदान के ‘नेतृत्व’ में चल रहे जलकुम्भी हटाओ अभियान के नतीजे आने से पहले ही वाहवाही लूटने की तैयारी हो गई है। इस कतार में केवल निगम प्रशासन और जिला प्रशासन ही नहीं, शहर के कुछ अतिसक्रिय, अति छपासी लोग भी बढ़ चढ़कर आगे आने लगे हैं।
प्रशासन ने बड़े गर्व से दावा किया है कि जलकुम्भी पर करीब करीब काबू पा लिया गया है, अब आनासागर झील खुलकर सांस ले सकेगी। झील में सिर्फ 16 फीसदी जलकुम्भी बची है जिसे इधर-उधर फैलने से रोकने के लिए कोटा से मंगवाए गए लोहे के जाल से बांध दिया गया है। इसके अलावा झील में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने के लिए एयरेटर लगाए जा रहे हैं।
निगम का हर प्रयास सराहनीय है। जलकुम्भी निकालने के काम में जुटे हर श्रमिक की मेहनत और जज्बा काबिले तारीफ है।
सवाल यह है कि झील में शेष बची 16 फीसदी जलकुम्भी को इतना हल्के में क्यों लिया जा रहा है। उसे किसलिए सहेजकर, जाल से बांधकर रखा जा रहा है। यह जिद्दी जलकुम्भी कब 16 फीसदी से 160 फीसदी हो जाए कोई नहीं जानता। यह जलकुम्भी रातोरात कई-कई गुना रफ्तार से बढ़ने का रिकॉर्ड बना चुकी है तो इसे फिर से फैलने का मौका क्यों दिया जा रहा है?
दूसरी बात, आनासागर में इससे पहले भी एयरेटर लगाए गए थे लेकिन निकम्मे लोग उनका मेंटीनेंस नहीं कर पाए थे और थोड़े ही दिनों में वे एयरेटर कबाड़ बनाकर जेटी पर पटक दिए गए थे। झील में पानी को उथल-पुथल करने के लिए कई फव्वारे लगाए गए थे, लेकिन थोड़े ही समय में उनकी भी ‘फूंक’ निकल गई थी।
झील में ऑक्सीजन लेवल बढ़ाने के नाम पर लाखों रुपए का चूना चट हो गया था। मछलियों को भले ही ऑक्सीजन नहीं मिली लेकिन कई सरकारी मगरमच्छों का हाजमा दुरुस्त हो गया था। इसी तरह सर्किट हाउस की पहाड़ी पर एक विशाल झरना बनाया गया था। आनासागर का पानी पम्पिंग कर पहाड़ी तक ले जाकर ढाई सौ फीट ऊंचाई से नीचे झील में गिराया जा रहा था। यह झरना देखने के लिए और सेल्फी लेने के लिए हर समय झील किनारे लोगों की भीड़ लगी रहती थी। थोड़े समय बाद यह झरना भी कब बंद हो गया, पता ही नहीं चला।
एक और कोशिश हुई म्यूजिकल फाउंटेन के रूप में। स्मार्ट सिटी से मिले फंड से पुरानी चौपाटी पर म्यूजिकल फाउंटेन स्थापित किया गया। इसके जरिए भी झील का पानी ऊपर-नीचे हो रहा था। इससे पानी में ऑक्सीजन लेवल बढ़ने के साथ-साथ लोगों का जबरदस्त मनोरंजन भी हो रहा था। यह म्यूजिकल फाउंटेन भी जल्द ही अपना राग भूल गया और झील बेनूर हो गई।
इतनी कोशिशों पर पानी फेरने वाले स्मार्ट अफसर अब भी नित नई कोशिशों में जुटे हैं, उनकी इस स्प्रीट की दाद देनी पड़ेगी। देखना यह है कि आनासागर कब पूरी तरह से जलकुम्भी से मुक्त होगा ? कब पूरी बांडी नदी से पूरी जलकुम्भी का सफाया होगा ? नए एयरेटर कब तक काम करेंगे ? यह झील कब तक लोगों के पेट पालती रहेगी ? ऐसे कई अनसुलझे सवाल हैं…।