नामदेव न्यूज डॉट कॉम
अजमेर। सन्त शिरोमणि नामदेव महाराज को युवावस्था में डाकू बताने सम्बन्धित भ्रामक जानकारी को लेकर देशभर का नामदेव समाज उद्वेलित है। समाज बंधुओं ने इसे मनगढ़ंत तथ्य बताते हुए रोष जाहिर किया है। साथ ही एक जागरूक समाजबंधु ने विकिपीडिया पर भी इस सम्बन्ध में सुधार कर दिया है।
दरअसल सन्त शिरोमणि के बारे में अपूर्ण जानकारी के आधार पर विकिपीडिया पर यह कंटेंट अपलोड कर दिया कि सन्त नामदेव अपनी युवावस्था में डाकू थे और बाद में ह्रदय परिवर्तन होने पर भक्ति भाव करने लगे। विकिपीडिया से यह कंटेंट कॉपी करके कुछ लोगों ने विभिन्न वेबसाइट पर भी दाल दिया।
इसका पता लगते ही सन्त नामदेव के अनुयायियों में रोष फ़ैल गया। विभिन्न मंचों पर इसका विरोध होने लगा। समाजबंधुओं ने आधी अधूरी जानकारी के आधार पर अपने आराध्य को डाकू बताए जाने की कड़ी भर्त्सना करते हुए यह कंटेंट परोसने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
इसी बीच बेंगलूरु निवासी अशोक ए. गहलोत ने विकिपीडिया से यह कंटेंट हटाकर सुधार कर दिया है।
मालूम हो कि महर्षि वाल्मीकि के जीवन चरित्र से मिलती-जुलती कहानी गढ़ कर किसी ने सन्त शिरोमणि की महिमा को कलंकित करने की कुचेष्टा की थी। इसकी सभी ने एकस्वर में निंदा की है।
बचपन से ही धर्मभीरू
महाराष्ट्र के उपलब्ध साहित्य के अनुसार सन्त नामदेव बचपन से ही धर्मभीरू थे। उनके माता-पिता भी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। सन्त नामदेव के बचपन को लेकर कई किंवदन्तियाँ भी प्रचलित हैं।
एक कथा के अनुसार , जब नामदेव जी छोटे थे, तब उनके पिता ने उन्हें भगवान के मंदिर में दूध चढ़ाने भेजा। बालक नामदेव मंदिर पहुंचे और मूर्ति के आगे दूध रखकर भगवान विट्ठल से दूध पीने का आग्रह करने लगे। मगर जब काफी देर तक मूर्ति ने दूध नहीं पिया तो वे रोने लगे। आखिरकार भगवान विट्ठल स्वयं प्रकट हुए और उन्होंने दूध पिया।
इसी तरह एक कथा है कि जंगल में लकड़ी काटने गए नामदेव जब लौटे तो उनके पैर में गहरा घाव था और उसमें से खून रिस रहा था। पिता ने यह देखा तो घबरा गए। उन्होंने पूछा तो नामदेव ने बताया कि उन्होंने तो यह जानने के लिए अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी कि जैसे हम पेड़ पर कुल्हाड़ी मारते हैं तो उसे भी दर्द होता है या नहीं।
इन कथाओं के प्रकाश में स्पष्ट है कि सन्त नामदेव बचपन से ही दयालु और धार्मिक प्रवृत्ति के थे, ऐसे में उनके डाकू होने का तो प्रश्न ही नहीं है।