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महामुकाबला : लीजिए, इस बार राष्ट्रपति का पद भी हो गया रिजर्व !

नई दिल्ली। भारतीय लोकतंत्र को हांकने वाली राजनीतिक पार्टियां कब क्या दांव चल दे और कब क्या कमाल दिखा दे, यह आम जनता सपने में भी नहीं सोच सकती। आपने वार्ड पंच से लेकर लोक सभा सदस्य तक की सीट आरक्षित होते तो देखी है मगर इस बार मानो इन पार्टियों ने देश के सर्वोच्च पद को भी आरक्षित कर दिया है। साथ ही बड़ी चतुराई से एक दलित को दूसरे दलित से लड़ाने की बिसात भी बिछा दी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बार एनडीए उम्मीदवार के तौर पर रामनाथ कोविंद के नाम पर मोहर लगाई। तब पूरे देश को पता चला कि कोविंद दलित हैं। इससे पहले तक वह सिर्फ बिहार के राज्यपाल ही थे। गूगल सर्च इंजन पर उनकी जाति सर्च की जाने लगी। चंद घंटों में विकिपीडिया खंगाल लिया गया। कोविंद की पूरी कुंडली सामने ला दी गई।

एनडीए यह प्रचारित कर गर्व महसूस करने लगा कि हमने एक दलित को देश के सर्वोच्च पद के लिए मौका दिया है, तो विपक्षी दल यह जानकर हैरान रह गए कि भगवा ब्रिगेड ने एक दलित को यह मौका कैसे दे दिया। सबके चेहरे भक्क रह गए।

ये वाला नहीं, हमारा वाला दलित चाहिए!

मोदी ने कोविंद को भले ही ‘स्वयंसेवक संस्कार’ की खूबी के कारण राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया हो लेकिन विपक्षी दलों को यह रास नहीं आया। मोदी ने सोनिया गांधी समेत दूसरे दलों के प्रमुखों को व्यक्तिगत फोन कर कोविंद को समर्थन देेने का आग्रह किया।

अब सारे देश की जनता इन दलों की तरफ देख रही थी कि वे एक दलित को समर्थन देते हैं या नहीं। अगर मोदी के दलित चेहरे को सीधे-सीधे नकारा तो देश का दलित वोट बैंक इनके खिलाफ हो जाएगा।

अगर अपना समर्थन दे दिया तो मोदी के रामनाथ सिरमौर बन जाएंगे। इसी उधेड़बुन में फंसे विपक्ष ने चुटकियों में कोविंद की सबसे बड़ी ‘कमी’ ढूंढ निकाली। उन्होंने सिरे से नकारते हुए कह दिया कि हमें आरएसएस वाला दलित नहीं बल्कि हमारा वाला दलित चाहिए।

रातो-रात अपने वाले दलित की तलाश शुरू हुई तो आरएसएस वाले दलित को टक्कर दे सके। इसके लिए उसकी टक्कर का ही दलित चाहिए था। आखिरकार मीरा कुमार पर तलाश खत्म हुई। अब यूपीए वाले खुश हैं। उन्हें एनडीए की टक्कर वाला उम्मीदवार मिल गया। गुरुवार को इसका ऐलान भी हो गया।

 

दो उम्मीदवारों में कई समानताएं

कोविंद
कोविंद कम बोलने वाले शालीन व्यक्तित्व के हैं। उनका कभी विवादों से नाता नहीं रहा है। वे उत्तरप्रदेश की कोरी जाति के दलित हैं। कानपुर देहात जिले के एक गांव में साधारण परिवार में पैदा हुए कोविंद ने कानपुर के एक कॉलेज से वकालत की पढ़ाई की और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुडऩे के बाद राजनीति में प्रवेश किया। वह बिहार के राज्यपाल सहित कई पदों पर रहे चुके हैं। खास बात यह भी है कि कोविंद का चयन प्रशासनिक सेवा के लिए हो चुका था, लेकिन उन्होंने नौकरी की जगह वकालत करना पसंद किया।
मीरा कुमार
सरल, सौम्य व्यक्तित्व की धनी मीरा कुमार पूर्व दलित उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम की पुत्री हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस जैसे प्रतिष्ठित कॉलेज से पढ़ाई की है। वह 1970 में भारतीय विदेश सेवा के लिए चुनी गई थीं और कई देशों में राजनयिक के रूप में सेवा दे चुकी हैं। लोकसभा अध्यक्ष के रूप में मीरा कुमार का कार्यकाल सराहनीय रहा है।

 

 

 

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