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मध्यप्रदेश में अब वेंटिलेटर घोटाला उजागर, 50 लाख की चपत


भोपाल। व्यापम जैसे कई घोटालों से बदनाम हो चुके मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार के नित नए मामले सामने आ रहे हैं। अब प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में वेंटीलेटर की खरीद में घोटाला उजागर हुआ है। इस घोटाले से सरकार को 50 लाख रुपए से भी ज्यादा की चपत लगी हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि प्रदेश की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं हैं। ऐसे में इस तरह के घोटाले सरकार को और बदहाली के गड्ढे में धकेल रहे हैं।
हाल ही चिकित्सा शिक्षा विभाग ने प्रदेश के छह कॉलेजों को कुल 30 वेंटीलेटर खरीदने की स्वीकृति प्रदान की है। इस आदेश के अनुसार ज्यादातर कॉलेजों में वेंटीलेटर खरीदे जा चुके हैं जबकि कुछ में खरीद प्रक्रिया जारी है।

इस पूरे मामले में सबसे अहम बात यह है कि शासन ने एक वेंटीलेटर पर 10 लाख 10 हजार रुपए खर्च किए हैं जबकि यही वेंटीलेटर दूसरी कंपनी 8 लाख 26 हजार रुपए में देने को तैयार थी। इस प्रकार शासन को दूसरी कंपनी से खरीदी में 50 लाख रुपए से ज्यादा की चपत लगी है। कंपनी ने अब शासन के निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।
यह है मामला
दरअसल प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में उपकरणों की खरीदी के लिए रेट तय करने की जिम्मेदारी केन्द्रीय कृत समिति इंदौर एवं मेडिकल कार्पोरेशन को दी गई है। ये दोनों संस्थाएं अलग-अलग एजेंसियों से टेंडर बुलाकर स्वीकृत करती हैं। केन्द्रीयकृत समिति ने साइंटिफिक सप्लाई एंड मेनुफेक्चरिंग कंपनी की रेट स्वीकृत की। इसके तहत एक वेंटीलेटर की कीमत 8 लाख 26 हजार रखी गई थी। जबकि मेडिकल कार्पोरेशन ने एक दूसरी कंपनी कोवीडियंस हेल्थ केयर इंडिया की रेट स्वीकृत की।

इस कंपनी ने एक वेंटीलेटर की कीमत 10 लाख 10 हजार रखी थी। इस प्रकार एक वेंटीलेटर की खरीद पर शासन को दो लाख रुपए का नुकसान हुआ है। खास बात यह है ज्यादा रेट वाली कंपनी से वेंटीलेटर खरीदने का निर्णय 9 सितम्बर को प्रमुख सचिव की अध्यक्षता में आयोजित चिकित्सा शिक्षा विभाग की बैठक में हुआ था।
डीएमई ने लिखा खरीदी के लिए पत्र
खास बात यह है कि इस कंपनी से वेंटीलेटर खरीदने के लिए खुद संचालक चिकित्सा शिक्षा डॉ. जीएस पटेल ने मेडिकल कॉलेजों को पत्र लिखा था। अक्टूबर में भेजे गए इस पत्र में स्वाइन फ्लू के मरीजों के लिए सभी मेडिकल कॉलेजों को वेंटीलेटर खरीदने के निर्देश दिए गए हैं।

यही नहीं पत्र में स्पष्ट रूप से वेंटीलेटर मेडिकल कार्पोरेशन द्वारा स्वीकृत कंपनी से ही खरीदने के निर्देश दिए गए हैं। इस पूरे मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस कंपनी के रेट फरवरी तक ही एप्रूवल थे लेकिन इसे बढ़ाकर मई तक कर दिया था।

वेंटीलेटर खरीदने के लिए इसे फिर पांच माह बढ़ाकर 30 नवबंर तक कर दिया है जबकि नियमानुसार इसे तीन माह से ज्यादा बढ़ाया ही नहीं जा सकता है। दूसरी तरफ कम रेट वाली कंपनी के रेट 27 अगस्त तक एप्रूवल थे और इसके बाद कंपनी के कॉट्रेक्ट को एक बार भी बढ़ाया नहीं गया।
गुणवत्ता सर्टिफिकेट भी कैंसिल
साइंटिफिक सप्लाई एंड मैनुफेक्चरिंग कंपनी के मनीष अग्रवाल का दावा है कि कोवीडियंस हेल्थ केयर इंडिया की ओर से कॉलेजों को सप्लाई किए गए वेंटीलेटर ई 360 का यूएसएफडी सर्टिफिकेट कैंसिल हो चुका है। यूएसएफडीए यूएस की संस्था है जो मेडिकल उपकरणों की गुणवत्ता के लिए यह सर्टिफिकेट प्रदान करती है। जानकारों का कहना है कि इस सर्टिफिकेट के कैंसिल होने से इन वेंटीलेटर की गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े हो गए हैं।