नई दिल्ली। कानूनी एवं नियामक अड़चनों और कुछ अन्य वजहों से गर्भपात की दवाओं के बाजार से गायब होने के कारण महिलाओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
प्रतिज्ञा लैंगिक समानता और सुरक्षित गर्भपात अभियान के तहत चार राज्यों में किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि गर्भपात की दवायें बाजार से तेजी से गायब हाे रही हैं। केमिस्ट गर्भपात की दवाओं का स्टाॅक न करने के पीछे कानूनी और नियामक अड़चनों को मुख्य वजह बता रहे हैं। इससे महिलाएं सुरक्षित और सुलभ गर्भपात की सुविधा से वंचित हो रही हैं।
बिहार ही एकमात्र राज्य है, जहां इनकी कम मांग को इसका कारण बताया गया। कुछ केमिस्ट से अनौपचारिक रूप से कहा गया है कि वे गर्भपात दवाएं न बेचें। इसके अलावा नियामक अधिकारियों ने खासतौर पर गर्भपात दवाओं की जांच के लिए केमिस्टों से सवाल-जवाब किए हैं।
गर्भपात की दवाओं से संबंधित दौरे राजस्थान (14.3%) और महाराष्ट्र (17.4%) में उच्च स्तर पर थे। 56% दवा दुकानदारों ने बताया कि शेड्यूल एच की अन्य दवाओं के मुकाबले गर्भपात दवाओं पर अधिक नियमन हैं।
यह अध्ययन बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के 1008 केमिस्ट के बीच किया गया। महाराष्ट्र और राजस्थान के केमिस्ट अब इन दवाओं का स्टॉक नहीं कर रहे हैं जबकि बिहार में मात्र 37.8 फीसदी और उत्तर प्रदेश में 66 प्रतिशत केमिस्ट इनका स्टॉक कर रहे हैं।
गौरतलब है कि देश में असुरक्षित गर्भपात मातृत्व मृत्यु दर का तीसरा प्रमुख कारण है। सुरक्षित, प्रभावी और सुलभ गर्भपात सेवाओं का प्रावधान जिनमें गर्भपात की दवाएं भी शामिल हैं, महिलाओं के स्वास्थ्य एवं प्रजनन अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए एक प्राथमिकता है। बड़ी संख्या में महिलायें गर्भपात दवाओं का उपयोग करती हैं और एक अनुमान के अनुसार हर साल कराये जाने वाले 1.56 करोड़ गर्भपातों में से 81% गर्भपात दवाओं (मिफेप्रिस्टोन एवं माइसोप्रोस्टॉल) के उपयोग से किए जाते हैं।
प्रतिज्ञा कैंपेन के सलाहकार समूह के सदस्य और फाउंडेशन फाउंडेशन फॉर रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विसेज इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वी.एस. चंद्रशेखर ने इस रिपोर्ट के बारे में बताया कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा पिछले डेढ़ दशक में उठाए गए सक्रिय कदमों की बदौलत देश ने सुरक्षित गर्भपात की सेवाएं उपलब्ध कराने और बेहतर बनाने में बड़ी कामयाबी हासिल की है।
गर्भपात दवाओं, विशेष रूप से कॉम्बी पैक की उपलब्धता ने असुरक्षित गर्भपात की संख्या घटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। गर्भपात दवाओं की अनुपलब्धता पिछले कुछ वर्षों में हासिल की गयी इस उपलब्धि को तार-तार कर सकती है।
अध्ययन में गर्भपातों और गर्भपात दवाओं के बारे में केमिस्ट की जागरुकता, ज्ञान और रवैए का पता लगाने की कोशिश की गई। 43% केमिस्ट का मानना था कि गर्भपात गैरकानूनी हैं और केवल 26% ही जानते थे कि यह 20 सप्ताह की गर्भावस्था तक वैध है। राजस्थान में तो 60.7% केमिस्ट ने कहा कि गर्भपात अवैध हैं, इसके बाद ऐसा कहने वालों की बड़ी संख्या बिहार (51.8%) में थी।
प्रतिज्ञा कैंपेन सलाहकार समूह की सदस्य और फैमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया की महासचिव डॉ. कल्पना आप्टे ने कहा, “केवल नौ सप्ताह तक के गर्भ के लिए ही कॉम्बी पैक गर्भपात की गोलियों का प्रयोग करने की मंजूरी मिली है और भ्रूण के लिंग की पहचान के लिए आमतौर पर प्रयुक्त होने वाली और सस्ती तकनीक अल्ट्रा सोनोग्राफी के उपयोग से 13-14 सप्ताह के आसपास के ही गर्भ के लिंग का पता लगाया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि कुछ गलत धारणाओं के कारण ही गर्भपात दवाओं पर बहुत अधिक नियमन लाद दिये गए हैं। इसके चलते गर्भावस्था को समाप्त करने वाली सुरक्षित, सरल और किफायती तरीके की उपलब्धता काफी हद तक प्रभावित हो रही है, जिससे देश में महिलाओं के स्वास्थ्य, कल्याण और प्रजनन अधिकारों से समझौता करना पड़ रहा है।
यह आम धारणा है कि महिलायें गर्भपात की दवाएं बिना डॉक्टर की पर्ची के खरीदती हैं, लेकिन अध्ययन के निष्कर्षों से पता चलता है कि 50% खरीदार प्रिस्क्रिप्शन के साथ आए थे।
चंद्रशेखर ने कहा कि सभी एलोपैथिक डॉक्टरों को गर्भपात दवाएं लिखने की अनुमति मिलने से गर्भपात दवाएं चाहने वाली महिलाओं के लिए निश्चित तौर पर प्रेस्क्रिप्शन एवं मेडिकल सपोर्ट में बढ़ोतरी होगी। अभी कानून और नियम हैं, केवल प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ और एमटीपी अधिनियम के तहत अनुमोदित एलोपैथिक डॉक्टर ही गर्भपात दवाएं लिख सकते हैं।
अनुमान है कि भारत में सिर्फ 60,000-70,000 डॉक्टर ही गर्भपात दवाएं लिख सकते हैं, जिनमें से एक बड़ी संख्या शहरी क्षेत्रों में है। यह भारत जैसे देश के लिए बिल्कुल अपर्याप्त है।
अध्ययन के अनुसार देश में हर साल होने वाले गर्भपातों की अनुमानित संख्या को देखते हुए आशंका है कि अगर दवा विक्रेता गर्भपात दवाओं को स्टॉक करना बंद कर देते हैं, तो ऐसी दवाओं की बिक्री के लिए एक दूसरा बाजार उभर सकता है, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं और महिलाओं के लिए गर्भपात के मनचाहे तरीके का उपयोग करने की राह में आर्थिक अड़चनें पैदा हो सकती हैं।
बड़ी संख्या में महिलाएं अवांछित गर्भ से मुक्ति के लिए गर्भपात दवाओं को प्रभावी, किफायती और सुविधाजनक मानती हैं। ज्यादा जांच-पड़ताल और छानबीन के कारण गर्भपात की दवाएं दवा विक्रेताओं की अलमारियों से गायब हो रही हैं। इसके नतीजे में लाखों महिलाएं इनकी उपलब्धता से वंचित हो रही हैं। सुरक्षित गर्भपात सेवाओं तक पहुंच से महिलाएं अपने स्वास्थ्य का बेहतर ख्याल रख सकेंगी जो देश और समाज के लिए जरूरी है।