मुंबई। फंसे कर्जे यानी नॉन परफॉरमिंग एसेट्स (एनपीए) की समस्या को लेकर सरकारी बैंकों को अभी और फजीहत झेलनी पड़ सकती है। एक तरफ तो ये बैंक दिन ब दिन बढ़ते फंसे कर्जों पर लगाम लगाने की कोई ठोस रणनीति नहीं बना पाए हैं।
दूसरी तरफ, अब उन्हें पहली बार उन बड़े लोन डिफॉल्टरों (कर्ज न लौटाने वाले ग्र्राहकों) के नाम भी सार्वजनिक करने होंगे जो जानबूझकर कर्ज नहीं लौटा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में सभी बैंकों को निर्देश दिया कि उन्हें 500 करोड़ रुपये से ज्यादा के लोन डिफॉल्टरों के नाम बताने होंगे।
कोर्ट के इस निर्देश का पालन होता है तो देश में पहली बार बैंकों से कर्ज लेकर वापस न करने वाले बड़े औद्योगिक घरानों व जालसाजों के नाम सामने आएंगे।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का व्यापक असर पडऩे की बात कही जा रही है। अभी तक रिजर्व बैंक के नियमों व कानूनों के आधार पर बैंक जानबूझकर लोन डिफॉल्टर के नाम सार्वजनिक नहीं करते थे। पिछली बार एक दशक पहले बैंक यूनियनों ने जानबूझकर कर्ज नहीं लौटाने वाले ग्र्राहकों के नाम सार्वजनिक किए थे।
दिसंबर, 2015 तक के आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ सरकारी बैंकों के 3.25 लाख करोड़ रुपये की राशि विभिन्न औद्योगिक घरानों के पास फंसी हुई है। माना जाता है कि इस राशि का लगभग 60 फीसद सिर्फ 150 व्यक्तियों या कंपनियों पर बकाया है।
मौजूदा फंसे कर्ज 3.25 लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त बैंक लाखों करोड़ रुपये की राशि पहले ही बैंक बट्टे-खाते में डाल चुके हैं। बैंकों को फंसे कर्ज वापस न आने की स्थिति में इसकी एवज में नियमों के अनुसार अपने शुद्ध मुनाफे में से पैसा निकालना होता है।
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वर्ष 2013-2015 के बीच में ही 1.14 लाख करोड़ रुपये की राशि बट्टे खाते में डाली गई है यानि फंसे कर्ज की राशि को एक तरह से माफ किया गया है। बहरहाल, अब इन कंपनियों के नाम भी सामने आने का रास्ता खुल गया है।