भोपाल। ईसाई समुदाय रविवार को ईस्टर पर्व की खुशियां मनाई जा रही हैं। गिरिजाघरों में प्रभु यीशु के जीवित हो उठने पर मंगल गीत गाए जा रहे हैं और इस अवसर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जा जा रहा है।
राजधानी के विभिन्न गिरिजाघरों में इसकी तैयारियां एक महीने से चल रही थी। सेंट जोन्स इवेंजलिकल लूथरन चर्च, गोविंदपुरा के चेयरमैन रेव्ह. डॉ. अनिल मार्टिन ने बताया कि रविवार को सुबह 9 बजे समाजजन गिरिजाघरों में इकट्ठे हुए और प्रभु की स्तुति की। ईस्टर पर्व का यह कार्यक्रम दोपहर 12 बजे तक धूमधाम व हर्षोल्लास से मनाया गया। उन्होंने बताया कि कि ईस्टर खुशी का दिन होता है। इस पवित्र रविवार को खजूर इतवार भी कहा जाता है। ईस्टर का पर्व नए जीवन और जीवन के बदलाव के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
ईस्टर संडे को ईसाई समुदाय के लोग गिरजाघरों में इकट्ठा होते हैं और जीवित प्रभु की आराधना (उपासना) स्तुति करते हैं और ईसा मसीह के जी उठने की खुशी में प्रभु भोज में भाग लेते हैं और एक-दूसरे को प्रभु ईशु के नाम पर शुभकामनाएँ देते हैं। ईस्टर भाईचारे और स्नेह का प्रतीक माना जाता है। डॉ, मार्टिन ने कहा कि प्रभु यीशु मसीह के जीवित होने पर चर्च में मसीही लोग प्रवचन, प्रार्थना, भजन कीर्तन व नाटक मंचन के द्वारा खुशी का इजहार किया गया। इसी तरह राजधानी के अन्य गिरिजाघरों में भी ईस्टर त्यौहार धूमधाम से मनाया गया।
क्यों मनाया जाता है ईस्टर
ईस्टर ईसाइयों का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है। ईसाई धार्मिक ग्रन्थ के अनुसार ईसाई धार्मिक ग्रन्थ के अनुसार, सूली पर लटकाए जाने के तीसरे दिन यीशु मरे हुओं में से जीवित हो गए थे। इस मृतोत्थान को ईसाई ईस्टर दिवस या ईस्टर रविवार के रूप में मनाते हैं । ये दिन गुड फ्राइडे के दो दिन बाद आता है। 26 और 36 ई.प. के बीच में हुई उनकी मृत्यु और उनके जी उठने के कालक्रम को अनेकों तरीके से बताया जाता है। ईस्टर को ईस्टर काल या ईस्टर सीजन भी कहा जाता है। परंपरागत रूप से ईस्टर काल चालीस दिनों का होता है। ये ईस्टर दिवस से लेकर स्वर्गारोहण दिवस तक होता आया है।