नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को फिल्म ‘पद्मावती’ को लेकर उच्च पदों पर आसीन लोगों की टिप्पणियों को गंभीर मानते गए नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि यह बयान फिल्म के संबंध में पहले से धारणा बनाने जैसे हैं क्योंकि सेंसर बोर्ड ने अभी तक उसे प्रमाणित नहीं किया है।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी. वाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने विदेश में फिल्म की रिलीज रोकने का निर्देश देने की मांग करने वाली ताजा याचिका खारिज कर दी।
याचिका दायर करने वाले सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता एम. एल. शर्मा ने न्यायालय से अनुरोध किया था कि सीबीआई को निर्देशक संजय लीला भंसाली और अन्य लोगों के खिलाफ मानहानि और सिनेमैटोग्राफी कानून के उल्लंघन का मामला दर्ज करने का निर्देश दिया जाए।
पीठ ने शर्मा की ओर से दायर ताजा याचिका पर कहा कि न्यायालय ऐसी फिल्म पर पहले से धारणा नहीं बना सकता, जिसे अभी सेंसर बोर्ड से प्रमाणपत्र नहीं मिला है। इस पर पीठ ने नाराजगी जताई और साथ ही कहा कि याचिकाकर्ता शीर्ष न्यायालय में अधिवक्ता हैं, इसलिए उन पर जुर्माना नहीं लगाया जा रहा है।
मालूम हो कि फ़िल्म पद्मावती को लेकर देशभर में रोष है। राजपूत समुदाय का आरोप है कि फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली ने इतिहास से छेड़छाड़ की है। पिछले दिनों करणी सेना ने अभिनेत्री दीपिका पादुकोण की नाक तक काटने का बयान दिया था।
चार दिन पहले राजस्थान जयपुर के नाहरगढ़ किले की दीवार पर एक युवक का शव लटका मिला था। शव के पास पत्थर पर कोयले से फिल्म के विरोध के बारे में लिखा था। हालांकि पुलिस जांच कर रही है कि युवक ने आत्महत्या की या उसकी हत्या की गई।