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डब्ल्यूएचओ की चेतावनी, कोरोना से लंबी चलेगी लड़ाई

जिनेवा/नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोरोना वायरस ‘कोविड-19’ को बेहद खतरनाक करार देते हुये चेतावनी दी है कि इसका कहर लंबे समय तक जारी रहेगा।

डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक तेद्रोस गेब्रियेसस ने कोविड-19 पर नियमित के दौरान कहा कि विभिन्न भू-क्षेत्रों में यह महामारी अलग-अलग चरणों में है। एक ही क्षेत्र के भीतर भी इसमें विविधता है। पश्चिमी यूरोप में या तो इसके नये मामलों में स्थिरता आ गयी है या वे घट रहे हैं। अफ्रीका, मध्य एवं दक्षिण अमेरिका और पूर्वी यूरोप में मामले कम हैं लेकिन चिंताजनक रूप से बढ़ रहे हैं।

उन्होंने कहा अधिकतर देशों में यह महामारी अभी आरंभिक चरण है। कुछ देशों में जहाँ यह बहुत पहले आयी थी वहाँ दुबारा इसका प्रकोप बढ़ रहा है। हमें किसी गलतफहमी में नहीं रहना चाहिये हमें लंबा रास्ता तय करना है। यह वायरस लंबे समय तक हमारे बीच रहने वाला है।

उन्होंने कहा कि निस्संदेह लॉकडाउन और सामाजिक दूरियों के अन्य उपायों से कई देशों में इसके संक्रमण को धीमा करने में सफलता मिली है, लेकिन यह वायरस बेहद खतरनाक है। इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि दुनिया की अधिकतर आबादी में इसके संक्रमण का खतरा है। इसका मतलब यह है कि इसका प्रकोप दुबारा बढ़ सकता है।

तेद्रोस ने कुछ देशों में लॉकडाउन के विरोध की खबरों के बीच कहा कि जाहिर तौर पर कई सप्ताह से घरों में कैद रहकर लोग ऊब चुके हैं। वे सामान्य जीवन जीना चाहते हैं क्योंकि उनकी जिंदगी और आजीविका दाँव पर है। उन्होंने कहा डब्ल्यूएचओ भी यही चाहता है और हम लगातार इसी उद्देश्य के लिए काम कर रहे हैं। लेकिन हम पहले के समय में वापस नहीं जा सकते। एक नये सामान्य की आवश्यकता है – एक ऐसी दुनिया जो अधिक स्वस्थ, अधिक सुरक्षित और (आपदाओं के लिए) अधिक तैयार हो।

उन्होंने सदस्य देशों से कोरोना के हर संभावित मरीज की पहचान करने, उन्हें एकांतवास में भेजने, उनकी जाँच करने, उनके संपर्क में आये लोगों की पहचान कर उन्हें एकांतवास में भेजने और लोगों को कोविड-19 के बारे में जागरूक तथा सशक्त करने के लिए कहा।

उन्होंने बताया कि दुनिया के 78 प्रतिशत देशों में ही कोरोना से लड़ने संबंधी कोई योजना तैयार है। इसके मरीजों का पता लगाने के लिए सर्विलांस तंत्र 76 फीसदी देशों के पास और मामलों की पुष्टि के लिए प्रयोगशाला परीक्षण की क्षमता 91 प्रतिशत देशों के पास है। चिंता की बात यह है कि 52 फीसदी देशों के पास इस लड़ाई में आम लोगों को शामिल करने की कोई योजना नहीं है तथा इतने ही प्रतिशत देशों के अस्पतालों तथा अन्य स्वास्थ्य केंद्रों में पीने के पानी, साफ-सफाई और स्वच्छता के बारे में कोई मानक नहीं है।

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