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कराहती कांग्रेस की ललकार, चुनावी लड़ाई के लिए तैयार


अजमेर। राजस्थान की राजनीति भी रिले रेस जैसी होकर रह गई है। एक बार बीजेपी तो दूसरी बार कांगे्रस, फिर बीजेपी फिर कांग्रेस। इस बार फिर कांग्रेस की बारी है। इसी उममीद में कांग्रेस ने अभी से लंगोट कस ली है। मंगलवार को अजमेर के रूपनगढ़ कस्बे में कांगे्रस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के स्व.पिता एवं कांग्रेस के दिग्गज रहे राजेश पायलट की मूर्ति का अनावरण हुआ। साथ ही किसान सम्मेलन का आयोजन हुआ। विशुद्ध कस्बाई कार्यक्रम देखते ही देखते प्रदेशस्तरीय बन गया। बड़े-बड़े नेताओं (गहलोत समर्थकों को छोड़कर) ने शिरकत की। माहौल देखकर ऐसा लगा कि विधानसभा चुनाव अगले महीने से ही हो रहे हों और पायलट आज ही टिकट बांट जाएंगे। पायलट की चाकरी में जुटे अनुशासित कांग्रेसी नेता खुद को पायलट परिवार का अंधभक्त दर्शाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। ऐसा होना भी चाहिए क्योंकि टिकट बांटना काफी कुछ पायलट के हाथ में रहेगा। यह अलग बात है कि इनमें से जिस नेता का टिकट कटेगा वह पायलट को सीधे-सीधे कोसने में पीछे नहीं रहेगा। बहरहाल अजमेर संसदीय सीट से खुद चुनाव हार चुके सचिन के (फिलहाल) अजमेर जिले में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जो गत बनी, वह अब तलक चर्चा में है। ठीक इसी तरह कांग्रेस भी अपनी मार भुला नहीं पाई है और इस बार  हरा बदला चुकाने का दम भर रही है।

गहलोत को दिखाया दम
पायलट और गहलोत, राजस्थान में कांग्रेस के दो धु्रव हैं। दोनों गुटों में जबरदस्त खींचतान है। पिछले दिनों सार्वजनिक तौर पर भी यह विवाद सामने आया था। माना जा रहा है कि पायलट ने खुद को मुख्यमंत्री का एकमात्र दावेदार दर्शाने के लिए यह शक्तिप्रदर्शन किया। गहलोत सोनिया के विश्वासी समझते जाते हैं तो पायलट राहुल के सखा हैं।


माहौल भी कांग्रेस के साथ
राज्य में कांग्रेस भले ही गहलोत-पायलट धड़े में बंटी हो लेकिन इस बार वसुंधरा राजे सरकार के खिलाफ लोगों में फैला आक्रोश कांग्रेस की राह आसान करता नजर आ रहा है। इसी तरह केन्द्र में मोदी सरकार के हवाई वादों की पोल खुल चुकी है। काला धन वापस लाने का वादा करके सत्ता पाने वाले मोदी अब तक सिर्फ हवाई यात्राएं ही कर रहे हैं। लोगों को सफाई मिशन पर लगाकर उनके दिमाग से काला धन वापसी की उम्मीद साफ कर दी है। करीब डेढ़ दर्जन योजनाएं लॉन्च की लेकिन लोगों का जीवन स्तर अब भी वही का वही है। उलटा अपना पीएफ बचाने के लिए लोगों को आंखें तरेरनी पड़ीं। बैंक-डाकघर में पाई-पाई जोडऩे वाली जनता को ब्याज दर कम करके झटका दिया है। यहां तक कि मासूम बच्चियों के नाम से लान्च सुकन्या योजना को भी नहीं बख्शा।


इधर वसुंधरा ने अपने राज में जयपुर में कई मंदिर तुड़वा दिए। शहर में आरएसएस को जनता के सामने शर्मसार होना पड़ा कि अपने ही राज में अपने ही राम नहीं बचा सके। इस मुद्दे पर विधानसभा में भी खूब हंगामा हुआ और सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा। एक तरफ वसुंधरा खुद मंदिरों में धोक लगाती नजर आती हैं तो दूसरी तरफ मेट्रो ट्रेन के चक्कर में कई मंदिर तुड़वाने का ‘पाप’ उनके सिर पर है।