चमोली। उत्तराखंड एक बार भीषण प्रलय का शिकार हुआ है। दूरस्थ इलाके में ग्लेशियर टूटने से पानी के रूप में तबाही आई। ग्लेशियर टूटने की घटना दूरस्थ इलाक़े में हुई। इसका मतलब ये है कि अभी तक किसी के पास इस सवाल का स्पष्ट जवाब नहीं होगा कि ये क्यों हुआ है। ग्लेशियरों पर शोध करने वाले विशेषज्ञों के मुताबिक हिमालय के इस हिस्से में ही एक हज़ार से अधिक ग्लेशियर हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि सबसे प्रबल संभावना ये है कि तापमान बढ़ने की वजह से विशाल हिमखंड टूट गए हैं जिसकी वजह से उनसे भारी मात्रा में पानी निकला है। और इसी वजह से हिमस्खलन हुआ होगा और चट्टानें और मिट्टी टूटकर नीचे आई होगी।
भारत सरकार के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ जियोलॉजी से हाल ही में रिटायर हुए डीपी डोभाल कहते हैं कि हम उन्हें मृत बर्फ़ कहते हैं, क्योंकि ये ग्लेशियरों के पीछे हटने के दौरान अलग हो जाती है और इसमें आमतौर पर चट्टानों और कंकड़ों का मलबा भी होता है। इसकी संभावना बहुत ज़्यादा है, क्योंकि नीचे की तरफ़ भारी मात्रा में मलबा बहकर आया है।
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कुछ विशेषज्ञों का ये भी मानना है कि हो सकता है कि ग्लेशियर की किसी झील में हिमस्खलन हुआ है जिसकी वजह से भारी मात्रा में पानी नीचे आया हो और बाढ़ आ गई हो। लेकिन कुछ विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि उस क्षेत्र में ऐसी किसी ग्लेशियर झील के होने की जानकारी नहीं है।
डॉ. डोभाल कहते हैं कि लेकिन इन दिनों ग्लेशियर में झील कितनी जल्दी और कब बन जाए ये भी नहीं कहा जा सकता। हिंदू कुश हिमायल क्षेत्र में ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से बढ़ रहे तापमान के कारण ग्लेशियर पिघल रही है जिसकी वजह से ग्लेशियर झीलें ख़तरनाक विस्तार ले रही हैं और कई नई झीलें भी बन गई हैं।
जब उनका जलस्तर ख़तरनाक बिंदु पर पहुंच जाता है, वो अपनी सरहदों को लांघ देती हैं और जो रास्ते में आता है उसे बहा ले जाती हैं। इसमें रास्ते में आने वाली बस्तियां और सड़क और पुलों जैसे आधारभूत ढांचे भी होते हैं। हाल के सालों में इस क्षेत्र में ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं।
एक संभावना ये भी है कि हिमस्खलन और भूस्खलन होने की वजह से नदी कुछ समय से जाम हो गई होगी और जलस्तर बढ़ने की वजह से अचानक भारी मात्रा में पानी छूट गया होगा। हिमालय क्षेत्र में भूस्खलन की वजह से नदियों के जाम होने और अस्थायी झीले बनने के कई मामले सामने आए हैं। बाद में ये झीलें मानव बस्तियों, पुलों और हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट जैसे अहम इंफ्रास्ट्रक्चर को बहा ले जाती हैं।
साल 2013 में जब उत्तराखंड के केदारनाथ और कई अन्य इलाक़ों में प्रलयकारी बाढ़ आई थी तब भी कई थ्योरी दी गई थीं। डॉ. डोभाल कहते हैं कि काफी समय बीतने के बाद ही हम पुख्ता तौर पर बता सके थे कि इस बाढ़ की वजह छौराबारी ग्लेशियर झील का टूटना था। उत्तराखंड के अधिकारियों का कहना है कि धौलीगंगा नदी में ये बाढ़ क्यों आई है इसका पता लगाया जा रहा है।