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आज हिमालय दिवस | तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर, झीलों से खतरे की दस्तक

न्यूज नजर डॉट कॉम

आज हिमालय दिवस है। सितंबर की 9 तारीख को हिमालय दिवस की आधिकारिक मान्यता 2014 से मिली, जब उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इसे मनाने की शुरुआत की थी। हिमालय दिवस की अवधारणा, हिमालयी पर्यावरण अध्ययन और संरक्षण संगठन के पर्यावरणविद अनिल जोशी और अन्य समर्पित भारतीय पर्यावरणविदों के सहयोगात्मक प्रयासों से पैदा हुई थी।
हिमालय का कवच बनकर उसकी रक्षा करने वाले ग्लेशियर बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन के कारण तेजी से पिघल रहे हैं। इसका एक खतरनाक परिणाम ग्लेशियर विखंडन के साथ ही ग्लेशियल झीलों के निर्माण और उनके आकार में तेजी से हो रही वृद्धि के रूप में सामने आ रहा है, जिसने चिंताएं बढ़ा दी हैं।
ग्लेशियल झीलें टूटने के चलते 2013 में केदारनाथ और 2023 में सिक्किम में आई आपदा भारी विनाश का कारण बन चुकी है। अब इसरो ने सेटेलाइट डाटा के आधार पर उत्तराखंड में ऐसी 13 झीलें चिह्नित की हैं। इनमें से पांच बेहद संवेदनशील हैं। खतरे के लिहाज से वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी अन्य संस्थानों के साथ मिलकर शुरुआती पांच झीलों का अध्ययन करेगा। वाडिया संस्थान की एक टीम उत्तराखंड के भीलंगना नदी बेसिन में 4750 मीटर की ऊंचाई पर बन रही ग्लेशियल झील का दौरा कर चुकी है। यह झील सर्दियों के दौरान पूरी तरह से जमी और बर्फ से ढकी रहती है।
वसंत की शुरुआत में तापमान बढ़ता है तो बर्फ पिघलनी शुरू हो जाती है। ग्लेशियर पर अध्ययन में जुटे संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अमित कुमार ने बताया कि आंकड़ों के अनुसार यहां 1968 में कोई झील दिखाई नहीं दे रही थी। 1980 में यहां झील दिखाई देने लगी और तब से यह लगातार बढ़ रही है। 2001 तक विकास की दर कम थी, लेकिन फिर यह लगभग पांच गुना तेजी से बढ़ने लगी। 1994 से 2022 के बीच करीब 0.07 वर्ग किमी से बढ़कर 0.35 वर्ग किमी हो गई, जो एक बड़ी चिंता का विषय है।

वसुंधरा ताल में झील विकसित हो रही

इसी तरह उत्तराखंड के चमोली क्षेत्र में रायकाना ग्लेशियर में वसुंधरा ताल में झील विकसित हो रही है। इसका क्षेत्रफल और आयतन 1968 से बढ़ गया है। 1968 में यहां केवल दो छोटी झीलें थीं, जिनका क्षेत्रफल लगभग 0.14 वर्ग किमी था। 1990 में कुछ नई झीलें विकसित हुईं, जिससे क्षेत्र 0.22 वर्ग किमी बढ़ गया। इसी तरह 2001 और 2011 में क्षेत्रफल 0.33 से 0.43 वर्ग किमी हो गया और 2021 में यह अनुमानित क्षेत्रफल 0.59 वर्ग किमी है। इसरो की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में इसी तरह की 13 झीलें हैं। इनमें से पांच अति संवेदनशील हैं।

उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की पहल पर वाडिया इंस्टीट्यूट अन्य वैज्ञानिक संस्था के साथ मिलकर पांच झीलों का अध्ययन कर रिपोर्ट देगा। ताकि, इनसे संभावित खतरों को दूर किया जा सके। डॉ. अमित कुमार का कहना है कि 2013 में केदारनाथ त्रासदी भी करीब चार हजार मीटर क्षेत्र की चोराबारी झील फटने से हुई थी। ऐसी झीलों का तेजी से बढ़ना चिंता का विषय है। झीलों में विस्फोट के लिहाज से संवेदनशील इस क्षेत्र में ग्लेशियल झीलों की निगरानी महत्वपूर्ण है।

पिघलने के साथ ही पीछे हट रहे ग्लेशियर से भी खतरा

वैज्ञानिक डाॅ. अमित कुमार के अनुसार रायकाना ग्लेशियर में 1990 से 2001 तक न्यूनतम 15 मीटर प्रति वर्ष की कमी आई है, जबकि 2017 और 2021 के बीच यह 38 मीटर प्रति वर्ष की दर से सिकुड़ रहा है। वहीं, दूसरी ओर, गंगोत्री ग्लेशियर भी पिछले एक दशक में करीब 300 मीटर पीछे खिसक चुका है। वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लेशियल झील वाले क्षेत्रों में ग्लेशियरों के सिकुड़ने से झील का क्षेत्र और गहराई बढ़ सकती है।

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