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अफ्रीका को 10 अरब डॉलर का सस्ता कर्ज देगा भारत

नई दिल्ली। इंदिरा गांधी स्टेडियम में तीसरे भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन के आखिरी दिन गुरुवार को सभी 54 अफ्रीकी देशों के राष्ट्राध्यक्ष और प्रतिनिधि एकत्र हुए।

सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफ्रीका के सभी देशों से कहा कि आज का दिन भारत-अफ्रीकी देशों के बीच सदियों से चली आ रही दोस्ती का एक और बड़ा पड़ाव है। हम दुनिया की मानवजाति के एक-तिहाई का नेतृत्व करते हैं, इसीलिए समय आ गया है कि हम अपने इस मानव संसाधन को विकसित करने के लिए साथ आएं। विकास की इस यात्रा में भारत हर तरह की तकनीकी मदद करेगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की है कि भारत अगले पांच साल में अफ्रीका को 10 अरब डॉलर का सस्ता कर्ज मुहैया कराएगा। साथ ही अफ्रीका को 600 मिलियन डॉलर मदद के रूप में मुहैया कराएंगे जाएंगे।

सत्र की शुरुआत रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम से हुई। इसमें भारत-अफ्रीका के बीच सांस्कृतिक समानता को दिखाया गया।

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अपने स्वागत भाषण में अफ्रीकी प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए भारत-अफ्रीका के बीच सदियों से चले आ रहे सांस्कृतिक संबंधों की याद दिलाई।

मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत महात्मा से मंडेला के उदाहरण से की। मोदी ने कहा कि भारत-अफ्रीका मिलकर दुनिया की जनसंख्या का एक-तिहाई हैं, और इस तरह आज इस दुनिया का एक-तिहाई, एक छत के नीचे एक कमरे में साथ है। ये बहुत बड़ी बात है।

हम दोनों दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं में से हैं। भौगोलिक तौर पर भी कभी हम एक थे, फिर हम सांस्कृतिक और मानवीय तौर पर एक हुए, लेकिन अब जरुरत है कि अपने लोगों के विकास के लिए हम एकजुट होकर काम करें।

मोदी ने कहा कि भारत-अफ्रीका दोनों ने ही संभावनाओं के लिए लंबा संघर्ष किया है। हमने न्याय पाने के लिए लंबी लड़ाइयां लड़ी और आज भी हम भूख, गरीबी, बीमारी से लगातार लड़ रहे हैं।

अब जरुरत है कि दोनों मिलकर युवाओं के इस नए युग की शुरुआत करें क्योंकि भारत-अफ्रीका मिलकर दुनिया की युवा जनसंख्या के एक बड़े भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं।

मोदी ने अफ्रीकी देशों से आह्वान किया कि नवंबर में पेरिस में क्लाइमेट चेंज पर होने वाले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में हमें दुनिया के सामने इस आपसी सहयोग को दिखाना होगा।

साथ ही भारत-अफ्रीका को मिलकर जलवायु परिवर्तन के खतरों से लडऩा होगा, क्योंकि ना आप किलिमंजारों पर्वत को बदलते देखना चाहेंगे, ना हम चाहेंगे कि हमारा गंगा ग्लेशियर खत्म होने लगे।