रांची। पैंतीस साल तक सरकारी नौकरी करने के बाद बुढ़ापे में किसी को पेंशन नहीं मिले तो उसकी हालत क्या होगी…और अगर सरकार उल्टा उससे 35 साल में उठाई गई तनख्वाह वापस मांगने लगे तो क्या हो. ?
बात अजीब है लेकिन एक शख्स के साथ ऐसा ही हुआ है। सरकार ने विश्वनाथ दास नामक कर्मचारी ने की नियुक्ति ही गलत तरीके से होना बताते हुए 35 साल तक मिले वेतन और लाभ की रिकवरी के आदेश दिए हैं।
झारखंड के जामताड़ा जिले के गायछद गांव के रहने वाले विश्वनाथ दास की 19 जून, 1976 में शिक्षक के रूप में नियुक्ति हुई थी। विश्वनाथ दास 35 वर्षों तक शिक्षक के रूप में सेवा देने के बाद 31 दिसंबर, 2011 को वे सेवानिवृत्त हो गए। दो साल तक वे सेवानिवृत्ति लाभ और पेंशन के लिए कार्यालय का चक्कर लगाते रहे। लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। थक हार कर उन्होंने हाई कोर्ट की शरण ली। हाई कोर्ट में सुनवाई के बाद जिला प्रशासन को सेवानिवृत्ति के मामले में निर्णय लेने का निर्देश देते हुए याचिका निष्पादित कर दी।
हाई कोर्ट के आदेश के बाद जिला प्रशासन ने कार्रवाई शुरू की। लेकिन जांच के दौरान जिला शिक्षा अधीक्षक को पता चला कि इनकी नियुक्ति ही गलत है।
डीएसई ने जिला स्थापना समिति को भेजे पत्र में कहा कि विश्वनाथ दास ने शिक्षक बनने के लिए गलत जाति प्रमाण पत्र का सहारा लिया था। विश्वनाथ दास जनरल कैटेगरी के तहत आते हैं, लेकिन नौकरी के लिए उन्होंने ओबीसी के जाति प्रमाण का सहारा लिया है। इसमें 2007 में हुई सीआइडी जांच का भी जिक्र किया गया है। हालांकि जांच के बाद विश्वनाथ दास को निलंबित भी कर दिया गया था और बाद उनका निलंबन भी वापस ले लिया गया। डीएसई ने विश्वनाथ दास से 35 सालों में मिले वेतन व अन्य लाभ की वसूली करने की अनुशंसा जिला स्थापना समिति से कर दी। समिति ने भी डीएसई की सिफारिश पर अपनी सहमति जता दी।
अब विश्वनाथ दास दोबारा हाई कोर्ट की शरण में पहुंचे हैं। उन्होंने रिकवरी के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी है। जिस पर कोर्ट ने डीएसई को इनके पूरे रिकार्ड के साथ उपस्थित होने का निर्देश दिया है।