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आज विश्व अग्निहोत्र दिवस : कोरोना जैसे विषाणुओं को रोकने में ‘अग्निहोत्र’ असरकारी

न्यूज नजर : वेदकाल से भारत में यज्ञकर्म किए जाते हैं। भारतीय संस्कृति में यज्ञयागों का आध्यात्मिक लाभ तो है ही, परंतु वैज्ञानिक स्तर पर भी अनेक लाभ होते हैं, यह अब विज्ञान द्वारा सिद्ध हो रहा है। इसमें एक सहज सरल और प्रतिदिन किया जानेवाला यज्ञ है अग्निहोत्र।

हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता रमेश शिंदे ने बताया कि हिन्दू धर्म ने मानवजाति को दी हुई यह एक अमूल्य देन है। अग्निहोत्र नियमित करने से वातावरण की बडी मात्रा में शुद्धि होती है। इतना ही नहीं, उसे करने वाले व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि भी होती है साथ ही वास्तु और पर्यावरण की भी रक्षा होती है।

अग्निहोत्र के कारण निर्माण होने वाले औषधियुक्त वातावरण के कारण रोगकारक किटाणुओं के बढने पर प्रतिबंध लगता है तथा उनका अस्तित्व नष्ट होने में सहायता होती है। इसलिए ही वर्तमान में जगभर में उत्पात मचाने वाले ‘कोरोना वायरस’ के संकट पर ‘अग्निहोत्र’ एक रामबाण उपाय हो सकता है।

12 मार्च को ‘विश्व अग्निहोत्र दिन’ है। इस पार्श्‍वभूमि पर सभी हिन्दू बंधू सभी प्रकार की वैद्यकीय जांच, उपचार, प्रतिबंधात्मक उपाय इत्यादि करते हुए देश में ‘करोना’ का प्रादुर्भाव रोकने के लिए तथा समाज को अच्छा आरोग्य और सुरक्षित जीवन जीने के लिए सूर्यादय और सूर्यास्त के समय ‘अग्निहोत्र’ करें।

अग्निहोत्र करने के लिए किसी भी पुरोहित को बुलाने की, दान धर्म करने की आवश्यकता नहीं होती। इसके लिए कोई भी बंधन नहीं है। सामान्य व्यक्ति यह विधि घर, खेत, कार्यालय में मात्र 10 मिनट में कहीं भी कर सकता है। इसका खर्च भी अत्यल्प है। अग्निहोत्र नित्य करने से धर्माचरण तो होगा ही, परंतु पर्यावरण के साथ ही समाज की भी रक्षा होगी।

‘अग्निहोत्र’ के संदर्भ में अनेक वैज्ञानिक प्रयोग किए गए हैं। उसकी विपुल जानकारी इंटरनेट के माध्यम से हम प्राप्त कर सकते हैं। फ्रान्स के ट्रेले नाम के वैज्ञानिक ने हवन पर किए अनुसंधान में हवन करने से वातावरण में 96 प्रतिशत घातक विषाणु और किटाणु कम होना दिखाई दिया है; उस विषय में ‘एथ्नोफार्माकोलॉजी 2007’ के जर्नल में शोधनिबंध प्रकाशित हुआ था।

‘नेशनल केमिकल लेबोरेटरी’ इस संस्था के निवृत्त ज्येष्ठ शास्त्रज्ञ डॉ. प्रमोद मोघे द्वारा किए गए अनुसंधान के अनुसार अग्निहोत्र के कारण वातावरण में सूक्ष्मकिटणुओं की वृद्धि 90 प्रतिशत से कम हुई है। प्रदूषित हवा के घातक सल्फरडाय ऑक्साईड के प्रमाण दस गुना कम होता है। पौधों की वृद्धि नियमित की अपेक्षा अधिक होती है। अग्निहोत्र की विभूति किटाणूनाशक होने से घाव, त्वचारोग इत्यादि के लिए अत्यंत उपयुक्त है। पानी के किटाणु और क्षार का प्रमाण 80 से 90 प्रतिशत कम करती है। इसलिए अमरीका, इंग्लैंड, फ्रान्स जैसे 70 देशों ने अग्निहोत्र का स्वीकार किया है। उन्होंने विविध विज्ञान मासिकों में उसका निष्कर्ष प्रकाशित किया है।

 

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