नई दिल्ली। कोलेस्ट्राल और मधुमेह के रोगियों को ध्यान में रखकर वैज्ञानिकों ने च्यवनप्राश के बेहतर विकल्प के तौर पर ‘आंवलाप्राश ’ का विकास किया जो रोग प्रतिरोधक क्षमता से भरपूर है तथा उसमें चीनी और घी का बिल्कुल प्रयोग नहीं किया गया है।
केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ के वैज्ञानिकों ने यह आंवलाप्राश तैयार किया है जिसमें क्वाथ बनाने की प्रक्रिया की जगह शीतल प्रक्रिया विधि का इस्तेमाल किया गया है।
च्यवनप्राश को क्वाथ बनाने के लिए लम्बे समय तक तक उच्च तापमान पर रखा जाता है जिससे अधिकांश एसोरबिक एसिड नष्ट हो जाते हैं। इससे पोषक क्षमता प्रभावित होती है जबकि शीतल प्रक्रिया विधि से तैयार आंवलाप्राश में पोषक तत्व और विटामिन सी भरपूर मात्रा में होते हैं और यह लम्बे समय तक तरोताजा बना रहता है।
पोस्ट हार्वेस्ट डिविजन की वैज्ञानिक नीलिमा गर्ग और उनकी टीम ने आंवलाप्राश को विकसित किया है। च्यवनप्राश के जनक माने जाने वाले ऋषि च्वयन ने युवा बने रहने के लिए इसका निर्माण किया था। च्यवनप्राश पूरी तरह से जड़ी- बूटियों से बनी आयुर्वेदिक औषधि है जो आंवला आधारित है।
ऐसा दावा किया जाता है कि इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है तथा यह सर्दी, कफ, अस्थमा और श्वसन सम्बन्धी कई रोगों की रोकथाम में मददगार है। संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार परम्परागत रुप से तैयार होने वाले च्यवनप्राश में जड़ी बूटियों के अलावा देसी घी और मीठापन के लिए सुक्रोज मिलाया जाता है।
देश में अनेक कंपनियां च्यवनप्राश बनाने और बेचने का काम कर रही हैं। कम्पनियां इसमें चीनी और देसी घी का उपयोग करती हैं जिसके कारण कोलेस्ट्रोल और मधुमेह से पीड़ित लोग इससे बचते हैं। स्वाद में बेहतरीन आंवलाप्राश एक वर्ष से अधिक समय तक ताजा बने रहने की क्षमता है। इसे अधिक समय तक सुरक्षित रखने के लिए इसमें कोई रसायन (प्रिजरवेटिव) नहीं डाला गया है।
संस्थान ने आंवलाप्राश के निर्माण की तकनीक का लाइसेंस हाल ही में हरियाणा की एक कम्पनी को दिया है। इस कम्पनी को प्रोद्योगिकी का हस्तान्तरण जल्दी किया जाएगा जिससे वह कृषि प्रसंस्करण कलस्टर के तहत इसका व्यावसायिक पैमाने पर उत्पादन कर सकेगी। इस कलस्टर को खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय ने मंजूरी दी है। उत्पाद का निर्माण भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के नियमों के अनुसार किया जाएगा।