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बड़े पैमाने पर मनानी चाहिए संत शिरोमणी नामदेव महाराज की पुण्यतिथि


नामदेव न्यूज डॉट कॉम
अजमेर। संत नामदेव महाराज ही एकमात्र ऐसे संत रहे जिन्हें संत शिरोमणी कहा जाता है। इसका कारण यह है कि उन्होंने क्षेत्र विशेष नहीं बल्कि पूरे भारत का भ्रमण कर भक्ति भावना का प्रचार-प्रसार किया। महाराष्ट्र से लेकर राजस्थान, पंजाब से लेकर मध्यप्रदेश तक उनके करोड़ों अनुयायी हैं। संत नामदेव ही एकमात्र ऐसे हैं जिन्हें नामदेव समाज के साथ सिख धर्मावलम्बी और सिंधी समाजबंधु भी पूरी श्रद्धा से पूजते हैं। ऐसे महान संत की पुण्यतिथि आज यानी 3 जुलाई को है। इसी दिन उन्होंने पंढरपुर शोलापुर महाराष्ट्र में महासमाधि ली थी। अलबत्ता कई जगह 2 जुलाई को उनकी पुण्यतिथि मनाई जाती है तो कई जगह 3 जुलाई को। इतना जरूर है कि बसंतोत्सव और संत नामदेव जयंती तो देशभर में धूमधाम से मनाई जाती है लेकिन उनकी पुण्यतिथि बड़े पैमाने पर नहीं मनाई जाती।

देश के कुछ ही भागों में उनकी पुण्यतिथि मनाई जाती है। वर्तमान में जरूरत इस बात की है कि बंसत पंचमी महोत्सव और संत नामदेव जयंती की तरह उनकी पुण्यतिथि भी देशभर में बड़े पैमाने पर मनाई जाए। इससे उनके आदर्श और शिक्षाओं के व्यापक प्रचार-प्रसार का अवसर मिलेगा। वर्तमान में नामदेव समाजबंधुओं की आबादी करोड़ों में होने के बावजूद देश की सकल आबादी व सामाजिक-राजनीतिक पहचान के बीच नामदेव समाज गौण है। ऐसे आयोजनों के जरिए ही हम ज्यादा से ज्यादा अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं। संत नामदेव की जयंती की तरह उनकी पुण्यतिथि पर भी देशभर के हर शहर-कस्बे-गांव में उनकी शोभायात्रा निकाली जाए, मंदिरों में भजन-कीर्तन व समाजबंधुओं की प्रसादी के साथ ही सामाजिक सरोकारों से जुड़ी गतिविधियां आयोजित की जानी चाहिए। ऐसे शुभ विचार नामदेव न्यूज डॉट कॉम के हैं।


संत नामदेव का जीवन परिचय
नामदेव महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत हुए हैं। इनके समय में नाथ और महानुभाव पंथों का महाराष्ट्र में प्रचार था।
संत नामदेव का जन्म सन 1269 (संवत 1327) में महाराष्ट्र के सतारा जिले में कृष्णा नदी के किनारे बसे नरसीबामणी नामक गांव में एक दर्जी परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम दामाशेटी और माता का नाम गोणाई देवी था। इनका परिवार भगवान विट्ठल का परम भक्त था। नामदेव का विवाह राधाबाई के साथ हुआ था और इनके पुत्र का नाम नारायण था।
संत नामदेव ने विसोबा खेचर को गुरु के रूप में स्वीकार किया था। ये संत ज्ञानेश्वर के समकालीन थे और उम्र में उनसे 5 साल बड़े थे। संत नामदेव ने संत ज्ञानेश्वर के साथ पूरे महाराष्ट्र का भ्रमण किया। भक्ति-गीत रचे और जनता जनार्दन को समता और प्रभु-भक्ति का पाठ पढ़ाया। संत ज्ञानेश्वर के परलोकगमन के बाद इन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया। इन्होंने मराठी के साथ ही साथ हिन्दी में भी रचनाएं लिखीं। इन्होंने अठारह वर्र्षों तक पंजाब में भगवन्नाम का प्रचार किया। अभी भी इनकी कुछ रचनाएं सिखों की धार्मिक पुस्तकों में मिलती हैं। मुखबानी नामक पुस्तक में इनकी रचनाएं संग्रहित हैं। आज भी इनके रचित गीत पूरे महाराष्ट्र में भक्ति और प्रेम के साथ गाए जाते हैं। ये संवत 1407 में समाधि में लीन हो गए।
(संत नामदेव के जन्म वर्ष को लेकर मतांतर हैं। इस लेख का उद्देश्य किसी विवाद को हवा देना नहीं बल्कि दुनियाभर के लोगों को संत नामदेव की महानता व उनकी भक्तिभावना से अवगत कराना है। दुनियाभर में नामदेव न्यूज डॉट कॉम न्यूज पोर्टल के पाठक हैं जो विभिन्न धर्म, सम्प्रदाय व समाजों से हैं। इस आलेख के माध्यम से वे संत नामदेव की महिमा से परिचित हो सकें, इसी भावना से संत शिरोमणी का परिचय दिया गया है )