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जब पेड़ है एक तो फिर शाखाएं क्यूं रहें दूर-दूर

premraj sarawagi1
अजमेर। एक पिता की चार संतानें। चारों अलग-अलग हुईं। वक्त बीतता चला गया…आपस में मेलजोल बढऩे की बजाय वे और दूर होते गए। तब आज की तरह ना तो आवागमन के पर्याप्त साधन थे और ना ही संचार के। इसलिए यह दूरियां और बढ़ गईं लेकिन अब ऐसा नहीं है।

अब आवागमन के भरपूर साधनों के साथ ही संचार के भी अत्याधुनिक साधन प्रचलन में हैं। एक-दूसरे से बिछड़ी शाखाएं फिर से एक ही वटवृक्ष का हिस्सा बनें तो सभी को विकास की भरपूर छाया मिल सकती है। नामदेव समाज के वयोवृद्ध समाजसेवी पे्रमराज सरावगी भी इससे सहमत हैं।
नामदेव छीपा समाज समिति अजमेर जिला के मंत्री एवं श्री नामदेव विट्ठल मंदिर एवं पंचायत छीपान पुष्कर के ऑडिटर पे्रमराज सरावगी कई दशकों से समाज हित में सक्रिय हैं। अब तक वे कई पदों पर रह चुके हैं और निरंतर समाज विकास के लिए प्रयासरत हैं।

करीब दो दशक पहले छीपा समाज के विवाह योग्य युवक-युवतियों कका पहला परिचय सम्मेलन आयोजित कराने में उनकी विशेष भूमिका रही। श्री विट्ठल नामदेव पत्रिका के माध्यम से समाजबंधुओं में वैचारिक जागरुकता बढ़ाने में सक्रिय हैं। खास बात यह है कि वे अपनी बेबाकी और स्पष्टवादिता के लिए जाने-पहचाने जाते हैं। सही को सही और गलत को पुरजोर तरीके से गलत कहना उनके स्वभाव की खासियत है।
‘नामदेव न्यूज’ से खास मुलाकात में उन्होंने कहा कि छीपा गहलोत, टाक, रोहिल्ला और भावसार अलग-अलग खाप होने के बावजूद एक ही पिता की संतानें हैं। वर्तमान में समाज का विखंडन हो रहा है। दूसरे समाजों में रिश्ते होने लगे हैं। अगर स्वयं नामदेव समाज का ही एकीकरण हो जाए तो अलग-अलग शाखाओं में बंटा समाज वृहद आकार ले लेगा और फिर रिश्तों के लिए दूसरे समाजों में नहीं जाना पड़ेगा।
तरक्की वक्त की जरूरत
छीपा समाज नि:संदेह रूप से तरक्की कर रहा है। बेहतर पढ़ाई करके समाज के युवा अच्छे पदों पर आसीन होने लगे हैं। अन्य खापों में भी तरक्की की बयार बह रही है। ऐसे में अगर सभी खापें एक-दूसरे के करीब आएं तो विकास का चेहरा ही कुछ और हो सकता है। आपसी मेलजोल बढ़ाने के लिए सभी समाजों के प्रतिनिधियों को आगे आना होगा।
मध्य मार्ग नहीं उचित
प्रेमराज सरावगी के मुताबिक एक तो वह समाज होता है जो अत्यधिक जागरूक होता है। वह समाज विकास की कतार में सबसे आगे खड़ा होता है। दूसरा वह जो बिल्कुल ही सुप्त होता है और नेतृत्व के कहते ही बिना ना-नुकूर किए उठ-खड़ा होता है, कहे अनुसार कर लेता है। तीसरा समाज इनके मध्य का होता है। मध्यमार्गी समाज में लोग खुद को एक-दूसरे से ज्यादा प्रभावशाली दर्शाना चाहते हैं। उनमें आपसी खींचतान और एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति ज्यादा होती है, यह नुकसानदेह है।

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