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साइकिल उद्योग कर्ज में डूबा, कई कम्पनियां बिकने के कगार पर

लुधियाना। पंजाब का साइकिल उद्योग 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा के कर्ज में डूब गया है। 32 बड़ी कंपनियां लोन न चुका पाने के कारण विभिन्न बैंकों की एन.पी.ए. (नॉन परफोर्मिंग एसेट) की लिस्ट में शामिल हो गई हैं। इनमें से कुछ कंपनियों के केस एन.सी.एल.टी. (नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल) में भी लगे हुए हैं।

यू.सी.पी.एम.ए. एसोसिएशन के पूर्व प्रधान चरणजीत सिंह विश्वकर्मा के मुताबिक साइकिल इंडस्ट्री की बिगड़ी चाल का मुख्य कारण 27 विदेशी ब्रांड का भारत में आना और सरकारी टैंडरों में साइकिल सप्लाई के कारण पेमैंट देरी से अदा करना माना जा रहा है। आज से 2 वर्ष पहले तक पेमैंट अदा करने का समय 45 से 60 दिन होता था लेकिन अब यह 120 से 150 दिन तक चला गया है। जिन कंपनियो ने बैंकों से क्रैडिट लिमिट ले रखी है, उनके अकाऊंट में 60 दिन के अंदर अगर पेमैंट जमा नहीं होती तो बैंक उनके अकाऊंट को एन.पी.ए. लिस्ट में डाल रहे हैं। इसके अलावा नॉन-ब्रांडिड साइकिल निर्माता भी बाजार में आ गए हैं जिस कारण बड़े ब्रांड की बिक्री प्रभावित हुई है। इस बिक्री का सीधा असर साइकिल पार्ट्स बनाने वाली कंपनियों पर पड़ रहा है।

काली साइकिल की बिक्री में खेल

काली साइकिलों की अधिक बिक्री सरकारी टैंडरो के जरिए हो रही है लेकिन सरकारी टैंडरों में दी जाने वाली साइकिल घूम कर फिर दुकानों पर बिकने को आ रही हैं जिससे डीलरों ने कंपनियों से खरीद को घटा कर टैंडरों वाले साइकिलों को तरजीह देनी शुरू कर दी है। डीलर व दुकानदार सस्ते में साइकिल खरीद कर महंगे दामों में बेच खूब कमाई कर रहे हैं। इस कारण भी साइकिल निर्माताओं का उत्पादन नीचे गिरा है।

फंडा यह भी

डिफाल्टर कंपनियों ने अब एन.सी.एल.टी. (नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल) में केस लगाने शुरू कर दिए हैं। इसमें लगने वाले केसों का निपटारा 25 से 30 प्रतिशत पेमैंट देकर हो रहा है। इस संबंध में जब बैंकों से आर.टी.आई. के जरिए लिस्ट मांगी गई तो उन्होंने देने से इंकार कर दिया। यही एक वजह है कि देश के बड़े बैंक भी कर्ज में डूबते जा रहे हैं। बैंकों की मिलीभगत से पहले लोन दे दिए जाते हैं फिर सस्ते में निपटारा एन.सी.एल.टी. के जरिए बैंक ही करवा देते हैं। स्टील की एक बड़ी कंपनी का कर्ज करीब 250 करोड़ था जिसने सिर्फ 70 करोड़ अदा कर छुटकारा पा लिया।

ये है हालत

डिफाल्टर होने के बाद कई बड़ी कंपनियां बिकने के लिए बाजार में आ गई हैं। सूत्रों से पता चला है कि साइकिल के एक बड़े ब्रांड को बेचने के लिए मुम्बई की एक फर्म ने मध्यस्थता करते हुए करीब 300 करोड़ की पेशकश साइकिल कंपनियों को भेजी जबकि इस कंपनी पर 200 करोड़ का लोन खड़ा है। इसे खरीदने के लिए 250 करोड़ तक की ऑफर लगी। इसी तरह साइकिल पार्ट्स बनाने वाली करीब 15 कंपनियों के नाम सामने आए हैं जिन्होंने घाटे के चलते कंपनियों को बेचने के लिए लगाया हुआ है।