मुंबई। एसडीआर के मामले में बैंकों को सहूलियत दी गई है और एसडीआर कर्ज में डूबी कंपनी का टेकओवर कर सकते हैं। बैंक को एसडीआर के लिए 51 फीसदी बेचने की शर्त से मुक्ति मिल गई है और अब 51 फीसदी की बजाय 26 फीसदी बेचना काफी रहेगा। कंपनी के मैनेजमेंट में बदलाव जरूरी है और 18 महीनों में 15 फीसदी की प्रोविजनिंग करना जरूरी होगा। कंपनी बिकने की संभावना कम होने पर प्रोविजनिंग बढ़ा देनी होगी।
रिजर्व बैंक ने कर्ज वसूली के लिए एसडीआर के नियम आसान कर दिए हैं। अब एसडीआर यानी स्ट्रैटेजिक डेट रीस्ट्रक्चरिंग के तहत बैंक कम हिस्सेदारी बेचकर भी प्रक्रिया शुरु कर सकते हैं। इसके साथ ही ज्वाइंट लेंडर फोरम के नियम भी सरल किए गए हैं।
बैंकों के लिए सामूहिक कर्ज वसूली आसान कर दी गई है। सामूहिक कर्ज वसूली के नियम आसान किए गए है और अब 75 फीसदी के बजाए 50 फीसदी कर्ज देने वाले बैंकों की रजामंदी जरूरी होगी। सामूहिक कर्ज वसूली के जेएलएफ बनाया गया है। जेएलएफ यानी ज्वाइंट लेंडर फोरम और जेएलएफ का सदस्य बैंक असहमति होने पर अलग हो सकता है। तय समय पर खरीदार लाने पर जेएलएफ का की राय माननी होगी।
अश्विन पारेख एडवाइजरी सर्विस के अश्विन पारेख का कहना है कि जब मौजूदा हालात में बैंकों के इतने एनपीए जमा हो गए हैं तो एसडीआर का रास्ता अपनाना अच्छा साबित हो सकता है। अभी तक इसके नियम कठिन होने की वजह से ये रास्ता ज्यादा नहीं लिया गया लेकिन अब इसके नियम आसान हो गए हैं। वहीं जेएलआर के जरिए हरेक बैंक को अलग अलग अधिकार की बजाए एकसमान तयशुदा समय मिलेगा। जेएलआर में एसबीआई और आईसीआईसीआई बैंक जैसे 2 बैंकों ने ये रास्ता अपनाने का काम किया है और अब अन्य बैंक भी इसके दायरे में आ जाएंगे।