सन्तोष खाचरियावास
जयपुर/ अजमेर।
जहां सिस्टम ही उधार में तेल भराकर गाड़ियां दौड़ाने का हो, वहां महज एक दिन पेट्रोल-डीजल नहीं मिलने से अफरा-तफरी मचना तय है। लेकिन जादूगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के राज्य में ऐसा नहीं हुआ। कथित रूप से उधार में तेल मिलना बंद होने के बावजूद पूरे राजस्थान में हजारों सरकारी वाहन रोजमर्रा की तरह दौड़ ही रहे हैं। वाकई यह चमत्कार है।
लेकिन हकीकत कुछ और है। कई पम्प संचालकों ने एक दिन पहले ही हजारों लीटर तेल उधार में एडवांस दे दिया है, ताकि उन पर पुलिस या प्रशासन की नजर टेढ़ी न हो, साथ ही RPDA की इज्जत भी बची रह जाए कि आंदोलन शुरू होने के बाद उधार नहीं दिया।
जानकारी तो यहां तक मिली है कि कुछ दमदार पेट्रोल पंप संचालकों ने अपने प्रशासनिक आकाओं के फोन आने पर आंदोलन शुरू होने के बाद भी सरकारी वाहनों में उधार का तेल भरा। बल्कि पहले से ज्यादा तेल दे दिया ताकि इन वाहनों को अगले तीन-चार दिन तक उनके यहां आने की जरूरत ही नहीं पड़े। प्रशासन से पंगा कौन मोल ले और अटकी हुई राशि कहीं हमेशा के लिए नहीं गंवा बैठें, यही सोचकर कइयों ने चुपचाप ही एडवांस में हजारों लीटर तेल दे दिया है। दूरदराज के पम्पों पर स्थानीय पुलिस वाहनों में तेल भराया जाता है। पुलिस अफसरों ने हड़काया तो पम्प संचालकों ने एक दिन पहले ही तेल के ड्रम भरकर पहुंचा दिए। साथ ही यह भी कहा कि- साहब, चार-पांच दिन में यह मामला ठंडा पड़ जाएगा, तब तक आपको कोई दिक्कत नहीं होने देंगे।
यह है उधार का गणित
यहां मालूम हो कि जिला पूल से लेकर पुलिस, विभिन्न सरकारी-अर्द्ध सरकारी विभागों, संस्थाओं, उपक्रमों के वाहनों में उधार में तेल भराने की व्यवस्था है। आमतौर पर एक-दो महीने में बिल पास होते ही पम्प संचालकों को भुगतान कर दिया जाता है। कई बार इसमें ज्यादा समय भी लग जाता है।
शहर में मात्र एक-दो पम्प संचालक ही ऐसे होते हैं जो सरकारी वाहनों में उधार में तेल भरते हैं, वह भी मजबूरी में। उधार का पैसा समय पर नहीं आने के कारण पम्प संचालक को अपनी कम्पनी में ब्याज भरना पड़ता है। कोई भी पम्प संचालक नहीं चाहता कि उसकी पूंजी उधार में फंसे। इसलिए वह सरकारी वाहनों को उधार में तेल देने से बचता है। लेकिन प्रशासन के दबाव के आगे उसकी एक नहीं चलती। कोई तेल देने से मना करता है तो रसद विभाग की टीम उसका पम्प सील करने की धमकी देती है। पुलिस अधिकारी आंखें दिखाते हैं। कारोबार का नाम ही कम्प्रोमाइज है।
प्रभावशाली पम्प संचालक पूरी कोशिश में रहता है कि उसके गले में यह उधार की घण्टी नहीं बंधे, बल्कि दूसरे पम्प वाले के बंध जाए। कुछ समृद्ध पम्प वाले यह सोचकर सरकारी वाहनों में राजी-खुशी उधार तेल देते हैं कि कभी न कभी पैसा तो आएगा ही, फिर अपनी सेल बढ़ाने में पीछे क्यों रहें।
अब जब इन प्रभावशाली पम्प संचालकों का ही पैसा अटक गया तो उन्होंने RPDA की नवगठित कार्यकारिणी का सहारा लेकर आंदोलन शुरू करवा दिया जबकि खुद अब भी गुपचुप उधार तेल दे रहे हैं और प्रचारित यह कर रहे हैं कि पुलिस और सरकारी वाहन चालक नकद राशि देकर तेल भरा रहे हैं।
पुराना मसला, हल केवल दिखाया
उधार का मसला लंबे समय से चल रहा है। पहले जब दूसरे पम्प संचालक का पैसा अटकता था, तब कभी भी RPDA ने इतना सख्त कदम नहीं उठाया। उन पम्प संचालकों को अपने ही हाल पर छोड़ रखा था। अब भी कई मुद्दों पर RPDA ने चुप्पी साध रखी है। लेकिन जब खुद प्रभावशाली पम्प संचालकों का पैसा फंसा तो यूनियन आंदोलन पर उतर आई है।
बहरहाल, शनिवार को लगातार दूसरे दिन भी पूरे राज्य में पुलिस की गाड़ियों सहित सभी सरकारी वाहन पहले की तरह दौड़ते रहे हैं। कहीं भी पम्प संचालकों के आंदोलन का असर नहीं है।
चुनावी साल में क्यों आई याद?
चुनावी साल में कई संगठन राज्य सरकार के मुखिया अशोक गहलोत पर दबाव बनाने में जुटे हैं और RPDA भी उनमें शामिल हो गई है। गहलोत इस बार किसी भी सूरत में अपनी सरकार रिपीट करने के लिए प्रयासरत हैं। इसके लिए वह नित नए दांव चल रहे हैं। पुरानी पेंशन स्कीम लागू कर कर्मचारियों को साध चुके हैं। रोजगार मेले लगाकर युवाओं को प्रभावित कर रहे हैं। महिलाओं को मोबाइल, लोगों और किसानों को मुफ्त बिजली, सामाजिक पेंशन 1 हजार रुपए तक बढ़ाकर और अब महंगाई राहत शिविर लगाकर हर वर्ग को अपने पक्ष में करते जा रहे हैं। इससे भाजपा बौखलाई हुई है। वह अपने मोहरों के जरिए सरकार पर दबाव बनाने में जुटी है। महंगाई के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। गहलोत वाकई जादूगर हैं। सम्भव है चुनाव से पहले वे एक बार फिर वैट घटाकर अपने विरोधियों की रणनीति फेल कर सकते हैं।
यह कैसी ज्ञापन की नौटंकी ?
उधर, जानकारी मिली कि अजमेर में शुक्रवार को RPDA के जिलाध्यक्ष की अगुवाई में तीन-चार पम्प संचालकों ने एडीएम सिटी भावना गर्ग को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने नाम ज्ञापन दिया। रोचक बात यह है कि शुक्रवार को मुख्यमंत्री अजमेर में ही थे और कई संगठनों के प्रतिनिधियों से राजी-राजी ज्ञापन भी लिए। इसके बावजूद RPDA के प्रतिनिधि मंडल में उन्हें ज्ञापन देने की बजाय दफ्तर में जाकर एडीएम को ज्ञापन देकर इतिश्री कर ली।