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मदरसे में पकड़ी नकली नोट की फैक्ट्री, मौलवी समेत 4 अरेस्ट

 

प्रयागराज। एक मदरसे में जाली नोट छपाई करने वाले गिरोह के चार गुर्गों को गिरफ्तार कर पुलिस ने उनके कब्जे से 1.3 लाख मूल्य के जाली नोट बरामद किए हैं। आरोपियों में मौलवी भी शामिल है।

पुलिस ने जाली नोट की सप्लाई की सूचना पर बस अड्डे के पास से मो. अफजल व शाहिद काे पकड़ा। उनके पास से 100-100 के नोटों की दो गड्डियांं बरामद हुईं। जांच में पता चला कि बरामद नोट जाली हैं। उनकी निशानदेही पर पुलिस ने अतरसुइया के जामिया हबीबिया मस्जिदे आजम मदरसा में छापा मारा।
वहां बड़ी संख्या में नकली नोट व इन्हें तैयार करने के उपकरण बरामद हुए। वहां से इन्हें छापने वाले जाहिर खान उर्फ अब्दुल जाहिर व मदरसे के मौलवी मो. तफसीरुल आरिफीन को गिरफ्तार किया गया। आरोपियों के पास से 1.3 लाख मूल्य के जाली नोट बरामद हुए। उन्होंने पूछताछ में बताया है कि वे 15 हजार के बदले 45 हजार के जाली नोट देते थे।
नकली नोट छपाने के लिए गिरोह के बदमाश हाई क्वालिटी स्कैनर और प्रिंटर का इस्तेमाल कर बड़ी पेपर शीट पर प्रिंट निकालते थे। पुलिस पूछताछ में बदमाशों ने बताया कि प्रिंट निकालने के बाद कटर से कटिंग कर एक-एक नोट को अलग करते थे। असली दिखाने के लिए सिक्योरिटी थ्रेड की जगह हरा टेप चिपकाते थे।
आरोपी जाहिर ने बताया कि उसका भाई ओडिशा में आधार कार्ड बनाने का सेंटर चलाता था। वह हाई क्वालिटी प्रिंटर और स्कैनर का उपयोग करता था। प्रयागराज आकर उसने भी हाई क्वालिटी प्रिंटर व स्कैनर से नकली नोट बनाना शुरू किया।
पहले असली नोट को स्कैन किया जाता था, फिर फोटो एडटिंग टूल के जरिये इनके नंबर बदलकर बड़ी पेपर शीट पर बल्क में नोट प्रिंट किए जाते थे। इन नोटों को रात में चारों लोग मिलकर कटर से काटकर अलग-अलग करते थे।
नोटों को कटर से काटने से पहले धातु के बने एक खांचे को प्रिंटेड शीट पर रखा जाता था। इस वजह से इनकी कटाई हूबहू असली नोटों जैसी होती थी। कटाई के बाद नोट को असली दिखाने के लिए उस पर सिक्योरिटी थ्रेड वाली जगह पर हरे रंग का सेलो टेप चिपकाया जाता था। असली व नकली नोट में अंतर सिर्फ यह था कि असली नोटों की तरह सिक्योरिटी थ्रेड पर आरबीआई अंकित नहीं होता था।

भीड़भाड़ वाले स्थानों पर चलाते थे नोट
आरोपियों ने बताया कि नोट भीड़भाड़ वाले स्थानों पर चलाते थे। रिक्शे, ऑटो, सब्जी, किराना जैसी छोटी दुकानों पर नोट चलाते थे। कम राशि का नोट होने से दुकानदार भी ज्यादा जांच नहीं करते थे, इसलिए नोट पकड़ में नहीं आते थे।
छुट्टी होने पर काम में जुट जाता था मौलवी
जाहिर ने बताया कि मौलवी तफसीरूल पहले बच्चों को पढ़ाता था। छुट्टी होने के बाद वह नकली नोट बनाने में मदद करता था। खासतौर पर वह कटिंग का ही काम करता था। खरीदारी के लिए वह तफसीरुल के साथ स्थानीय बाजारों में नकली नोटों का इस्तेमाल करते थे। उधर, अफजल व शाहिद शहर के अन्य हिस्सों में जाकर इन नोटों को खपाते थे।

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