नन्हीं जानों की मौत का कौन जिम्मेदार : एक्सपायर सिलेंडर, मौन सेफ्टी अलार्म
Namdev News
झांसी। चाहे पेट्रोल पंप हों या अस्पताल, भीषण अग्निकांड होने के बाद भी सिस्टम कोई सबक नहीं लेता। मिलीभगत की मॉक ड्रिल कर अपनी पीठ थपथपा ली जाती है। लोगों की बलि लेकर भी सबक कोई नहीं लेता। न उन रिश्वतखोर अफसरों पर कोई कार्रवाई होती है न बलि लेने वाले पेट्रोलियम अफसरों या अस्पताल के कर्ता धर्ताओं पर। सीएम योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि पर भी यही प्रपंच का हवन भभका है।
उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के महारानी लक्ष्मी बाई मेडिकल कॉलेज के नवजात शिशु गहन चिकित्सा वार्ड (एसएनसीयू) में भीषण आग लगने से 10 नवजात शिशुओं की झुलसने एवं दम घुटने से मौत हो गई। जिस वार्ड में आग लगी थी, वहां 55 नवजात भर्ती थे। 45 नवजात को सुरक्षित निकाल लिया गया। शुरुआती जांच में सामने आया है कि आग बुझाने वाले सिलिंडर एक्सपायर हो चुके थे। ये सिलिंडर से आग काबू पाने में नाकाम साबित हुए।
झांसी मेडिकल कॉलेज में आग से बचाव के लिए लगे फायर इंस्टीग्यूशर गवाही दे रहे हैं कि कोई दो साल पहले तो कोई एक साल पहले अपनी उम्र पूरी कर चुका था। जिसकी वजह से ये सिलिंडर आग बुझाने में नाकाम साबित हुआ। एक सिलिंडर पर 2019 की फिलिंग डेट है, एक्सपायरी डेट 2020 की है। यानि फायर सिलिंडर को एक्सपायर हुए कई साल हो चुके थे। यह सिलिंडिर खाली दिखावे के लिए यहां रखे हुए थे।
मॉक ड्रिल पर उठे सवाल
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने बताया कि फरवरी 2024 में मेडिकल कॉलेज में फायर सेफ्टी की व्यवस्थाएं देखी गई थी। जून में ट्रायल भी किया गया था, मगर अफसोस की बात यह है कि एसएनसीयू में शुक्रवार की रात आग लगने की घटना हुई और 10 नवजात शिशुओं ने जलने से दम तोड़ दिया। यहां पर आग से बचाव के लिए लगे फायर इस्टिंगयुशर गवाही दे रहे हैं कि कोई दो साल पहले तो कोई एक साल पहले अपनी उम्र पूरी कर चुका था। जिसकी वजह से आग बुझाने में नाकाम साबित हुआ।
नहीं बजे सेफ्टी अलार्म
इससे पहले यह जानकारी सामने आई थी कि नवजात शिशु गहन चिकित्सा कक्ष में आग से बचाव के लिए सेफ्टी अलार्म लगाए गए थे, लेकिन आग लगने पर सेफ्टी अलार्म नहीं बजा। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है धुआं फैलने के बाद चारों ओर चीख-पुकार मच गई। अगर सेफ्टी अलार्म समय पर बजता तब बचाव कार्य जल्द शुरू हो सकते थे।
नवजात शिशु गहन चिकित्सा कक्ष में लगी आग चंद मिनट में फैलकर दरवाजे तक पहुंच गई। इस वजह से भीतर जाने का रास्ता नहीं मिल रहा था। दमकलकर्मियों ने पीछे के रास्ते अंदर जाने की कोशिश की लेकिन, कामयाब नहीं हुए। इसके बाद वार्ड की खिड़की के कांच तोड़कर किसी तरह दमकलकर्मी अंदर पहुंचे। अंदर आग की लपटों के साथ धुआं भरा था। आग लगने के करीब आधे घंटे बाद बचाव कार्य शुरू हो सका। इसके बाद दमकलकर्मियों ने नवजातों को बाहर निकालना शुरू किया।
ग्राउंड फ्लोर होने से नवजात बाहर निकाले जा सके। अगर हादसा दूसरी मंजिल पर होता, तब बचाव कार्य में और मुश्किल होती। एसएनसीयू वार्ड की दो यूनिट हैं। एक यूनिट अंदर और दूसरी बाहर की तरफ है। सबसे पहले जो नवजात बाहर की ओर थे, उनको बाहर निकाला गया। अंदर की तरफ जो बच्चे थे, वो काफी झुलस गए। यहां भर्ती बच्चों को बचाया नहीं जा सका।
नवजातों को बचाने के लिए मची अफरा-तफरी
नवजात शिशु गहन चिकित्सा कक्ष (एसएनसीयू) से आग की लपटें बाहर आतीं देख परिजन चीखते वार्ड को ओर दौड़ पड़े। कई परिजन लपटों की परवाह किए बगैर अंदर जा घुसे। फायरकर्मियों ने उनको बाहर किया। अफरातफरी के बीच दमकलकर्मी वार्ड के भीतर पहुंच सके। उसके बाद वार्ड से भर्ती नवजात बाहर निकाले जाने लगे। नवजातों को बाहर निकालते ही कई परिजन बदहवास हाल में उनको उठाकर अपने साथ ले गए।
चंद दिनों में विदा
एसएनसीयू वार्ड में जन्म के बाद पीलिया, निमोनिया से पीड़ित नवजात रखे जाते हैं। महज चंद घंटे की उम्र होने के नाते पहचान के लिए इनके हाथ में सिर्फ मां के नाम की स्लिप अथवा पांव में रिबन लगी होती है लेकिन, आगजनी के बाद अफरातफरी में अधिकांश नवजातों के हाथ की स्लिप निकल गई। इनको बाहर निकाला गया तो इनके पास कोई पहचान चिह्न नहीं था। अधिकांश परिजनों को जो नवजात मिला, उसे उठाकर वह ले गए।
कहां गए नवजात ?
कई मां-बाप रोते-बिलखते अपने बच्चे के लिए गुहार लगाते रहे। महोबा निवासी संजना, जालौन निवासी संतराम अपने बच्चों को पागलों की तरह तलाशते रहे। उनके नवजात उनको मिले ही नहीं। बच्चे के लापता होने पर मां-बाप डॉक्टर, कर्मी एवं अधिकारियों से गुहार लगाते रहे लेकिन, कोई भी जवाब नहीं मिला।
रानी सेन नामक महिला ने देर रात बताया कि उनका तीन दिन का बच्चा नहीं मिल रहा है। रानी ने बताया कि उनकी देवरानी का नाम संध्या है, जिसके तीन दिन पहले बच्चा हुआ था। तबीयत बिगड़ने पर उसे मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया था। आग लगने के बाद संध्या का बच्चा नहीं मिल रहा है।