कानपुर। आयकर अधिकारी की मौत के बाद 17 महीने तक उनके शव को घर में ही रखने वाले परिवार ने उनके ‘इलाज’ में अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी। मोती अस्पताल में अप्रैल 2021 में विमलेश की मौत और फिर उसके जीवित होने की आस पूरे परिवार को थी। इसे अपनी उम्मीद को बचाने का प्रयास कहें या फिर विमलेश को जिंदा करने की कोशिश, उसकी देखभाल के लिए पत्नी मिताली दीक्षित छह माह तक बैंक ही नहीं गई।
भाई दिनेश भी दो माह तक ऑफिस नहीं गया था। हद तो ये कि कोरोना काल में एक-एक लाख रुपये में सिलेंडर लाकर उसे ऑक्सीजन दी गई।
भाई दिनेश कुमार ने बताया कि विमलेश को मोती अस्पताल से लाने के बाद शरीर में हरकत का पता चला तो लोगों ने ऑक्सीजन लगाने की सलाह दी थी। ईसीजी, ऑक्सीमीटर की रीडिंग किसी जिंदा इंसान की ही तरह थी। इसलिए पहले दो-तीन हफ्ते अस्पतालों में भर्ती करने के लिए परिवार दौड़ा। नाकाम रहने पर घर पर ही रख लिया और इलाके के लोगों से कह दिया कि वह कोमा में है।
कुछ पड़ोसी देखने पहुंचे तब जरूर उन्होंने विमलेश की मौत की आशंका जताई थी। उनका कहना था कि सिलेंडर से दी जा रही ऑक्सीजन के भरोसे ही उसकी सांसें चल रही हैं। इस पर 7 अक्तूबर 2021 को ऑक्सीजन सिलेंडर हटा दिया गया। उसके बाद फिर कभी ऑक्सीजन नहीं दी गई। उसके शरीर से न तो दुर्गंध आ रही थी और न कीड़े पड़े थे।
बेडसोर हो गया था
दिनेश ने दावा किया कि घर में रखने के दो-तीन महीने बाद विमलेश को बेडसोर हो गया था। उसके शरीर की रोज सफाई होती थी और हर दो दिन में उसके कपड़े बदले जाते थे। मां रामदुलाई उसकी सफाई का सबसे ज्यादा ध्यान रखती थीं।
अस्थियां कीं प्रवाहित
विमलेश की अस्थियां शनिवार को पिता रामऔतार और भाइयों सुनील व दिनेश ने गंगा में विसर्जित कीं। इसके बाद बच्चों ने पूरे परिवार समेत घर पर बाल मुंडवाए। कुछ रिश्तेदार भी घर पर आकर परिजनों से शोक संवेदना व्यक्त करते रहे।